Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
पढमो वेमाणिय उद्देसो
प्रथम वैमानिक उद्देशक कहि णं भंते! वेमाणियाणं देवाणं विमाणा पण्णत्ता? कहि णं भंते! वेमाणिया देवा परिवसंति?
जहा ठाणपए तहा सव्वं भाणियव्वं णवरं परिसाओ भाणियव्वाओ जाव सक्के. अण्णेसिं च बहूणं सोहम्मकप्पवासीणं देवाण य देवीण य जाव विहरंति॥२०७॥
- भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! वैमानिक देवों के विमान कहां कहे गये हैं ? हे भगवन् ! वैमानिक देव कहां रहते हैं ? .. उत्तर - प्रज्ञापना सूत्र के स्थान पद के अनुसार यहां सारा वर्णन कह देना चाहिये। विशेषता यह है कि अच्युत विमान तक परिषदाओं का भी कथन करना चाहिये यावत् बहुत से सौधर्म कल्पवासी देव और देवियों का आधिपत्य करते हुए सुखपूर्वक विचरण करते हैं।
। विवेचन - प्रज्ञापना सूत्र के स्थान पद में वैमानिक देवों का वर्णन इस प्रकार किया गया है - - इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसमरमणीय भूमिभाग से ऊपर चन्द्र सूर्य ग्रह नक्षत्र तथा तारा रूप ज्योतिषी देवों के अनेक सौ योजन, अनेक हजार योजन, अनेक लाख योजन, अनेक करोड़ योजन और बहुत कोटाकोटि योजन ऊपर जाने पर सौधर्म-ईशान-सनत्कुमार-माहेन्द्र-ब्रह्मलोक-लान्तक-महाशुक्रसहस्रार-आणत-प्राणत-अच्युत, ग्रैवेयक और अनुत्तर विमानों में वैमानिक देवों के चौरासी लाख सत्तानवे हज़ार तेवीस (८४९७०२३) विमान एवं विमानावास हैं।
ये विमान सर्वरत्नमय, स्फटिक के समान स्वच्छ, चिकने, कोमल, घिसे हुए, चिकने बनाये हुए, रज रहित, निर्मल, पंक रहित, निरावरण कांति वाले, प्रभायुक्त, श्रीसंपन्न, उद्योत सहित, प्रसन्नता उत्पन्न करने वाले दर्शनीय, रमणीय, अभिरूप और प्रतिरूप हैं। उनमें बहुत से वैमानिक देव निवास करते हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं-१. सौधर्म २. ईशान ३. सनत्कुमार ४. माहेन्द्र ५. ब्रह्मलोक ६. लान्तक ७. महाशुक्र ८. सहस्रार ९. आनत १०. प्राणत ११. आरण १२. अच्युत, नवग्रैवेयक और पांच अनुत्तरोपपातिक देव।
वे सौधर्म से अच्युत तक के देव क्रमश: १. मृग २. महिष ३. वराह ४. सिंह ५. बकरा (छगल) ६. दर्दुर ७. हय ८. गजराज ९. भुजंग १०. खड्ग (गेंडा) ११. वृषभ और १२. विडिम के प्रकट चिह्न से युक्त मुकुट वाले, शिथिल और श्रेष्ठ मुकुट और किरीट के धारक, श्रेष्ठ कुण्डलों से उद्योतित मुख वाले, मुकुट के कारण शोभा युक्त, रक्त आभा युक्त, कमल पत्र के समान गौरे, श्वेत सुखद वर्ण गंध
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org