Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति - समुद्रों के पानी का स्वाद
२३३
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जंबूद्वीप नाम वाले कितने द्वीप कहे गये हैं ? उत्तर - हे गौतम! जंबूद्वीप नाम के असंख्यात द्वीप कहे गये हैं। प्रश्न - हे भगवन्! लवण समुद्र नाम के कितने समुद्र कहे गये हैं ? उत्तर - हे गौतम! लवण समुद्र नाम के असंख्यात समुद्र कहे गये हैं।
इसी प्रकार धातकीखंड नाम के भी असंख्यात द्वीप हैं यावत् सूर्यद्वीप नाम के द्वीप असंख्यात कहे गये हैं।
देवद्वीप नामक द्वीप एक ही है। देवोद समुद्र भी एक ही है। इसी तरह नागद्वीप, यक्षद्वीप, भूतद्वीप यावत् स्वयंभूरमण द्वीप भी एक ही है। स्वयंभूरमण नामक समुद्र भी एक ही है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में जम्बूद्वीप आदि नाम वाले द्वीपों की संख्या बताई गयी है। अरुणद्वीप से सूर्य द्वीप तक त्रिप्रत्यवतार है। सूर्यद्वीप के बाद दो दो है। सूर्यद्वीप सूर्यसमुद्र, देवद्वीप देवोदसमुद्र, नागद्वीप नागोद समुद्र, यक्षद्वीप यक्षोद समुद्र इस प्रकार सबसे अंत में स्वयंभूरमण द्वीप और स्वयंभूरमण समुद्र है। जंबूद्वीप नाम वाले यावत् सूर्य द्वीप वाले असंख्यात द्वीप हैं। इसी तरह लवण समुद्र वाले यावत् सूर्योद समुद्र वाले असंख्यात समुद्र हैं। देवद्वीप यावत् स्वयंभूरमण समुद्र तक एक द्वीप एक समुद्र है।
समुद्रों के पानी का स्वाद लवणस्स णं भंते! समुहस्स उदए केरिसए आसाएणं पण्णत्ते?
गोयमा! लवणस्स० उदए आइले रइले लिंदे लवणे कडुए अपेजे बहूणं दुपयचउप्पयमिगपसुपक्खिसरी-सिवाणं णण्णत्थ तज्जोणियाणं सत्ताणं॥
कालोयस्स णं भंते! समुदस्स उदए केरिसए आसाएणं पण्णत्ते?
गोयमा! आसले पेसले मासले कालए मासरासिवण्णाभे पगईए उदगरसेणं पण्णत्ते॥
पुक्खरोदस्स णं भंते! समुहस्स उदए केरिसए आसाएणं पण्णत्ते? गोयमा! अच्छे जच्चे तणुए फालियवण्णाभे पगईए उदगरसेणं पण्णत्ते॥ • भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! लवण समुद्र के पानी का स्वाद कैसा है ?
उत्तर - हे गौतम! लवण समुद्र का पानी मलिन, रजवाला, शैवाल रहित चिरसंचित जल जैसा, खारा कडुआ है अत: बहुसंख्यक द्विपद-चतुष्पद मृग-पशु-पक्षी सरीसृपों के लिए पीने योग्य नहीं है किंतु उसी जल में उत्पन्न और संवर्धित जीवों के लिये पेय-पीने योग्य है।
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