Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र
___ हंता गोयमा! सुब्भिसद्दा पोग्गला दुब्भिसद्दत्ताए परिणमंति दुन्भिसद्दा पोग्गला सुबिभसद्दत्ताए परिणमंति, से णूणं भंते! सुरूवा पुग्गला दुरूवत्ताए परिणमंति दुरूवा पुग्गला सुरूवत्ताए परिणमंति? हंता गोयमा!०, एवं सुब्भिगंधा पोग्गला दुब्भिगंधत्ताए परिणमंति दुब्भिगंधा पोग्गला सुब्भिगंधत्ताए परिणमंति? हंता गोयमा!०, एवं सुफासा दुफासत्ताए? सुरसा दुरसत्ताए०?, हंता गोयमा!०॥१९१॥ ____ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! क्या ऐसा कहा जा सकता है कि उत्तम-अधम (ऊंच-नीच) शब्द परिणामों में, उत्तम-अधम रूप परिणामों में, इसी तरह गंध परिणामों में, रस परिणामों में और स्पर्श परिणामों में परिणत होते हुए पुद्गल परिणत होते हैं।
उत्तर- हाँगौतम! उत्तम-अधम (ऊंच-नीच) रूप में बदलने वाले शब्दादि परिणामों के कारण पुद्गलों का बदलना कहा जा सकता है। यानी पर्यायों के बदलने पर द्रव्य का बदलना कहा जा सकता है।
प्रश्न - हे भगवन् ! क्या उत्तम शब्द अधम शब्द के रूप में और अधम शब्द उत्तम शब्द के रूप में बदलते हैं?
उत्तर - हाँ गौतम! उत्तम शब्द अधम शब्द के रूप में और अधम शब्द उत्तम शब्द के रूप में बदलते हैं।
प्रश्न - हे भगवन् ! क्या शुभ रूप वाले पुद्गल अशुभ रूप में और अशुभ रूप वाले पुद्गल शुभ रूप में परिणत होते हैं ?
उत्तर - हाँ गौतम! शुभ रूप वाले पुद्गल अशुभ रूप में और अशुभ रूप वाले पुद्गल शुभ रूप में बदलते हैं। इसी प्रकार सुरभिगंध के पुद्गल दुरभिगंध के पुद्गल रूप में और दुरभिगंध के पुद्गल सुरभिगंध के पुद्गल के रूप में बदलते हैं। शुभ स्पर्श पुद्गल अशुभ स्पर्श के पुद्गल के रूप में, अशुभ स्पर्श के पुद्गल शुभ स्पर्श पुद्गल के रूप में बदलते हैं। शुभ रस के पुद्गल अशुभ रस के रूप में और अशुभ रस के पुद्गल शुभ रस के पुद्गल में परिणत होते हैं।
__ देव शक्ति विषयक वर्णन देवे णं भंते! महिड्डिए जाव महाणुभागे पुव्वामेव पोग्गलं खवित्ता पभू तमेव अणुपरियट्टित्ताणं गिण्हित्तए?
हंता पभू, से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ-देवे णं महिड्दिए जाव गिण्हित्तए? गोयमा! पोग्गले खित्ते समाणे पुव्वामेव सिग्घगई भवित्ता तओ पच्छा मंदगई भवइ, देवे णं महिड्डिए जाव महाणुभागे पुव्वंपि पच्छावि सीहे सीहगई तुरिए तुरियगई चेव से तेणढेमं गोयमा! एवं वुच्चइ जाव अणुपरियट्टित्ताणं गेण्हित्तए॥
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