Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति - वरुणवर द्वीप वर्णन
२१३
पुष्करोद समुद्र का विजय द्वार हैं। शेष सारा कथन जंबूद्वीप के विजय द्वार की तरह कह देना चाहिये। इन द्वारों का परस्पर अंतर संख्यात लाख योजन का है। प्रदेश स्पर्श और जीवों की उत्पत्ति का कथन पूर्ववत् समझना चाहिये।
प्रश्न - हे भगवन् ! पुष्करोद समुद्र, पुष्करोद समुद्र क्यों कहलाता है ?
उत्तर - हे गौतम! पुष्करोद समुद्र का पानी स्वच्छ, पथ्यकारी, जातिवंत हल्का, स्फटिक रत्न की आभा वाला तथा स्वभाव से ही उदक रस वाला है। श्रीधर और श्रीप्रभ नाम के दो महर्द्धिक देव यावत् पल्योपम की स्थिति वाले वहां रहते हैं। इसलिये पुष्करोद समुद्र पुष्करोद कहलाता है यावत् नित्य एवं शाश्वत नाम वाला है।
प्रश्न - हे भगवन्! पुष्करोद समुद्र में कितने चन्द्र उद्योतित होते थे, होते हैं और होंगे आदि प्रश्न ? - उत्तर - हे गौतम! पुष्करोद समुद्र में संख्यात चन्द्र प्रभासित होते थे, होते हैं और होंगे इत्यादि सारा वर्णन पूर्ववत् कर देना चाहिये यावत् संख्यात कोटाकोटि तारें वहां शोभित होते थे, शोभित होते हैं और शोभित होंगे।
___ . वरुणवर द्वीप वर्णन पुक्खरोदे णं समुद्दे वरुणवरेणं दीवेणं संपरिक्खित्ते वट्टे वलयागारे जाव चिट्ठइ, तहेव समचक्कवालसंठिए० केवइयं चक्कवालविक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते? गोयमा! संखेजाइं जोयणसयसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं संखेजाइं जोयणसयसहस्साइं परिक्खेवेणं पण्णत्ते, पउमवरवेइयावणसंडवण्णओ दारंतरं पएसा जीवा तहेव सव्वं॥ .
भावार्थ - गोल और वलयाकार पुष्करोद नाम का समुद्र वरुणवरद्वीप से चारों ओर से घिरा हुआ स्थित है। इत्यादि पूर्वानुसार कह देना चाहिये यावत् वह समचक्रवाल संस्थान से संस्थित है।
प्रश्न - हे भगवन्! वरुणवरद्वीप का चक्रवाल विष्कंभ कितना है और उसकी कितनी परिधि है ?
उत्तर - हे गौतम! वरुणवरद्वीप का चक्रवाल विष्कंभ लाख योजन का है और उसकी परिधि संख्यात लाख योजन की है। उसके चारों और पद्मवरवेदिका और वनखण्ड है। दोनों का वर्णन कह देना चाहिये। द्वारों का अंतर, प्रदेश स्पर्श, जीवोत्पत्ति आदि सारा वर्णन पूर्वानुसार समझ लेना चाहिये।
सेकेण?णं भंते! एवं वुच्चइ-वरुणवरे दीवे वरुणवरे दीवे?
गोयमा! वरुणवरे णं दीवे तत्थ तत्थ देसे देसे तहिं तहिं बहूओ खुड्डाखुड्डियाओ जाव बिलपंतियाओ अच्छाओ० पत्तेयं पत्तेयं पउमवरवेइयापरि० वण०
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