Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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२१६
जीवाजीवाभिगम सूत्र
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हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। वरुणोद समुद्र का पानी इससे भी अधिक इष्टतर यावत् मनोज्ञ स्वाद वाला कहा गया है। वहां वारुणि और वारुणकांत नामक दो महर्द्धिक यावत् पल्योपम की स्थिति वाले देव रहते हैं, इसलिये वह वरुणोद समुद्र कहलाता है अथवा हे गौतम! वरुणोद समुद्र यावत् नित्य
और शाश्वत नाम वाला है। हे भगवन्! वरुणोद समुद्र में कितने चन्द्र प्रभासित होते थे, होते हैं और होंगे आदि प्रश्न? हे गौतम ! वरुणोद समुद्र में चन्द्र सूर्य आदि सभी ज्योतिषी देव संख्यात संख्यात कह देने चाहिये।
क्षीरवरद्वीप और क्षीरोद समुद्र वारुणोदण्णं समुदं खीरवरे णामं दीवे वट्टे जाव चिट्ठइ सव्वं संखेजगं विक्खंभे य परिक्खेवो य जाव अट्ठो० बहूओ खुड्डा० वावीओ जाव बिलपंतियाओ खीरोदगपडिहत्थाओ पासाइयाओ ४, तासु णं० खुड्डियासु जाव बिलपंतियासु बहवे उप्यायपव्वयगा सव्वरयणामया जाव पडिरूवा, पुंडरीगपुप्फदंता एत्थ दो देवा महिड्डिया जाव परिवति, से एएणद्वेणं जाव णिच्चे जोइसं सव्वं संखेजं॥
भावार्थ - वरुणवर समुद्र को गोल और वलयाकार क्षीरवर नामक द्वीप चारों ओर से घेर कर रहा हुआ है। उसका विष्कम्भ और परिधि संख्यात लाख योजन की है आदि वर्णन पूर्ववत् कह देना चाहिये। क्षीरवर द्वीप में बहुत सी छोटी छोटी बावड़ियां यावत् बिल पंक्तियां हैं जो क्षीरोदक से परिपूर्ण हैं यावत् प्रतिरूप हैं। पुण्डरीक और पुष्करदन्त नाम के दो महर्द्धिक देव यावत् वहां रहते हैं इसलिये उसे क्षीरवर द्वीप कहते हैं यावत् वह नित्य शाश्वत है। उस क्षीरवर द्वीप में चन्द्र सूर्य आदि सभी ज्योतिषियों की संख्या संख्यात संख्यात कहनी चाहिये।
खीरवरण्णं दीवं खीरोए णामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिए जाव पंरिक्खित्ताणं चिट्ठइ समचक्कवालसंठिए णो विसमचक्कवालसंठिए, संखेजाइं जोयणस० विक्खंभपरिक्खेवो तहेव सव्वं जाव अट्ठो,
गोयमा! खीरोयस्स णं समुदस्स उदगं (से जहा णामए-सुउसुहीमारुपण्णअजुणतरुणसरसपत्तकोमलअत्थिग्गत्तणग्गपोंडग-वरुच्छुचारिणीणं लवंगपत्तपुप्फपल्लवकक्कोलगसफलरुक्खबहुगुच्छगुम्मकलियम-लट्ठिमपउरपिप्पलीफलियवल्लिवरविवरचारिणीणं अप्पोदगपिइरइसरसभूमिभागणि-भयसुहोसियाणं सुपोसियसुहायारोगपरिवजियाणं णिरुवहयसरीराणं कालप्पसविणीणं बिइयतइयसामप्पसूयाणं
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