Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति - घृतवर आदि द्वीप समुद्रों का वर्णन
२१७ 000000000000000000000000000000.................0000000000000000 अंजणवरगवलवलयजलधरजच्चंजणरिट्ठभ-मरपभूयसमप्पभाणं गावीणं कुंडदोहणाणं वद्धत्थीपत्थुयाणं रूढाणं मधुमासकाले संगहिए होज चाउरक्केव होज तासिं खीरे महुररसविवगच्छबहुदव्वसंपउत्ते पत्तेयं मंदग्गिसुकढिए आउत्ते) खंडगुडमच्छंडिओववेए रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स उवट्ठविए आसायणिज्जे विस्सायणिज्जे पीणणिज्जे जाव सव्विंदियागायपल्हायणिजे वण्णेणं उववेए जाव फासेणं उववेए, भवे एयारूवे सिया?, णो इणढे समढे, खीरोदस्स णं समुदस्स उदए एत्तो इट्ठयराए चेव जाव आसाएणं पण्णत्ते, विमलविमलप्पभा एत्थ दो देवा महिड्डिया जाव परिवसंति, से तेणटेणं० संखेजा चंदा जाव तारा॥१८१॥
भावार्थ - क्षीरवर नामक द्वीप को क्षीरोद नामक समुद्र चारों ओर से घेर कर रहा हुआ है। वह वर्तुल और गोलाकार है, समचक्रवाल संस्थान से संस्थित है, विषमचक्रवाल संस्थान से संस्थित नहीं है। संख्यात लाख योजन का उसका विष्कंभ एवं परिधि है आदि सारा वर्णन पूर्वानुसार समझ लेना चाहिये यावत् नाम संबंधी प्रश्न करना चाहिये।
हे गौतम! क्षीरोद समुद्र का पानी चक्रवर्ती राजा के लिये तैयार की गयी खीर जो चतुःस्थान परिणाम से परिणत है, शक्कर, गुड़, मिश्री आदि से स्वादिष्ट बनाई गई है, जो मंद अग्नि पर पकाई गई है जो आस्वादनीय, विस्वादनीय, प्रीणनीय, यावत् सर्व इन्द्रियों और शरीर को आह्लादित करने वाली है जो वर्ण से संदर यावत स्पर्श से मनोज्ञ है. क्या ऐसा क्षीरोद समद्र का पानी है?
गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है। क्षीरोद समुद्र का पानी इससे भी अधिक इष्टतर यावत् मन को तृप्ति देने वाला कहा गया है। विमल और विमलप्रभ नाम के दो महर्द्धिक देव यावत् वहां निवास करते हैं इसलिये वह क्षीरोद समुद्र कहलाता है। उसमें चन्द्र, सूर्य यावत् तारा आदि ज्योतिषी संख्यात-संख्यात हैं।
घृतवर आदि द्वीप समुद्रों का वर्णन खीरोदण्णं समुदं घयवरे णामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिए जाव परि० चिट्ठइ, समचक्कवाल० णो विसम० संखेजविक्खंभपरि० पएसा जाव अट्ठो,
गोयमा! घयवरे णं दीवे तत्थ तत्थ.....बहूओ खुड्डाखुड्डीओ वावीओ जाव घयोदगपडिहत्थाओ उप्पायपव्वयगा जाव खडहड० सव्वकंचणमया अच्छा जाव पडिरूवा, कणय-कणयप्पभा एत्थ दो देवा महिड्डिया० चंदा संखेजा०॥ . भावार्थ - क्षीरोद नामक समुद्र को घृतवर नाम का द्वीप चारों ओर से घेर कर रहा. हुआ है। वह
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