Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र .000000000000000000000000000000000000000000000wwrrorstrestions भग्गाणं अपालियाणं तिभायणिच्छोडियवाडिगाणं अवणियमूलाणं गंठियपरिसोहियाणं कूसलणरकप्पियाणं उच्छूढाणं जाव पोडियाणं बलवगणरजत्तजंतपरिगालियमेत्ताणं खोयरसे होज्जा वत्थपरिपूए चाउज्जायगसुवासिए अहियपत्थलहुए वण्णोववेए तहेव, भवे एयारूवे सिया?, णो इणढे समढे, खोदोदस्स णं समुद्दस्स उदए एत्तो इट्ठयराए चेव जाव आसाएणं पण्णत्ते पुण्णभद्धमाणिभद्दा य (पुण्णपुण्णभद्दा) इत्थ दुवे देवा जाव परिवसंति, सेसं तहेव, जोइसं संखेजं चंदा० ॥१८२॥
कठिन शब्दार्थ - आसल मासल पसत्थ वीसंत णिद्ध सुकुमाल भूमिभागे - आसल-मांसल-. प्रशस्त-विश्रांत-स्निग्ध सुकुमाल भूमिभागे-मनोहर प्रशस्त विश्रांत स्निग्ध और सुकुमार भूमिभाग में, सुच्छिण्णे-सुकट्ठ लट्ठ-विसिट्ठ णिरु वहयाजीयवावीतसुकासजपयत्तणिउण परिकम्म अणुपालियसुवुड्डि वुड्डाणं - सुच्छिन्ने सुकाष्ठ लष्ट विशिष्ट णिरुपहत बीजोप्तेष्टकाशकपत्रपत्रक 'निपुणपरिकर्माऽनुपालित सुवृद्धि वृद्धानाम्-निपुण कृषिकार द्वारा काष्ठ के सुंदर विशिष्ट हल से जोती गई भूमि में जिस इक्षु का आरोपण किया गया है और निपुण पुरुष के द्वारा जिसका संरक्षण हुआ है।
भावार्थ - गोल और वलयाकार क्षोदोद नामक समुद्र क्षोदवरद्वीप को चारों ओर से घेरे हुए स्थित हैं यावत् संख्यात लाख योजन का विष्कंभ और परिधि है आदि सब वर्णन अर्थ संबंधी प्रश्न तक कह .. देना चाहिये।
हे गौतम! क्षोदोद समुद्र का पानी श्रेष्ठ इक्षुरस जैसा है वह इक्षुरस -स्वादिष्ट, गाढ, प्रशस्त, विश्रान्त, स्निग्ध और सुकुमार भूमिभाग में निपुण कृषिकार द्वारा काष्ठ के सुंदर विशिष्ट हल से जोती गई भूमि में जिस इक्षु का आरोपण किया गया है और निपुण पुरुष के द्वारा जिसका संरक्षण किया गया हो, तृण रहित भूमि में जिसकी वृद्धि हुई हो इससे जो निर्मल एवं पक कर विशेष रूप से मोटी हो गई हो और मधुर रस से जो युक्त बन गई हो, शीतकाल के जंतुओं के उपद्रव से रहित हो, ऊपर और नीचे की जड़ का भाग निकाल कर और उसकी गांठों को भी अलग कर बलवंत बैलों द्वारा यंत्र से निकाला गया हो तथा वस्त्र से छाना गया हो और चार प्रकार के सुगंधित द्रव्यों से युक्त किया गया हो, अधिक पथ्यकारी और पचने में हलका हो तथा शुभ वर्ण, गंध, रस, स्पर्श से युक्त हो, क्या ऐसे इक्षु रस के समान क्षोदोद समुद्र का पानी है ?
हे गौतम! क्षोदोद समुद्र का पानी इससे भी अधिक इष्टतर यावत् मन को तृप्ति करने वाला है। यहां पूर्णभद्र और मणिभद्र (पूर्ण और पूर्णभद्र) नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं इसलिये वह क्षोदोद समुद्र कहा जाता है। शेष सारा वर्णन पूर्वानुसार समझना चाहिये यावत् वहां संख्यात संख्यात चन्द्र, सूर्य, ग्रह नक्षत्र और कोडाकोडी तारे शोभित होते थे, शोभित होते हैं और शोभित होंगे।
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