Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति - नंदीश्वर द्वीप का वर्णन
२२३ 000000000000000000000000000000000rsittornerrrrrrrrrrrrrrrr... सोलस जोयणाई उ8 उच्चत्तेणं, अट्ठ जोयणाई विक्खंभेणं तावइयं चेव पवेसेणं सेसं तं चेव जाव वणमालाओ॥ एवं पेच्छाघरमण्डवावि तं चेव पमाणं जं मुहमंडवाणं दारा वि तहेव णवरि बहुमज्झदेसभाए पेच्छाघरमंडवाणं अक्खाडगा मणिपेडियाओ अद्धजोयणप्पमाणाओ, सीहासणा अपरिवारा जाव दामा थूभाई चउद्दिसिं तहेव णवरि सोलसजोयणप्पमाणा साइरेगाइं सोलसजोयणाई उच्चा सेसं तहेव जाव जिणपडिमा। चेइयरुक्खा तहेव चउद्दिसिं तं चेव प्रमाणं जहा विजयाए रायहाणीयाए, णवरि मणिपेढियाए सोलसजोयणप्पमाणाओ, तेसिणं चेइयरुक्खाणं चउद्दिसिं चत्तारि मणिपेढियाओ अट्ठजोयणविक्खंभाओ, चउजोयणबाहल्लाओ महिंदज्झया चउसट्ठिजोयणुच्चा, जोयणोव्वेधा जोयणविक्खंभा सेसं तं चेव॥
भावार्थ - उन प्रत्येक सिद्धायतनों की चारों दिशाओं में चार द्वार कहे गये हैं उनके नाम इस प्रकार हैं - १. देवद्वार २. असुरद्वार ३. नागद्वार और ४. सुपर्णद्वार। उनमें महर्द्धिक यावत् पल्योपम की स्थिति वाले चार देव रहते हैं। यथा - देव. असर, नाग और सपर्ण। वे द्वार सोलह योजन ऊंचे. आठ योजन चौड़े और उतने ही प्रमाण के प्रवेश वाले हैं। ये द्वार सफेद हैं, कनकमय इनके शिखर हैं आदि सारा वर्णन जियद्वार के समान वनमाला तक समझना चाहिये। उन द्वारों की चारों दिशाओं में चार मुखमंडप हैं। वे मुखमंडप एक सौ योजन विस्तार वाले, पचास योजन चौड़े और सोलह योजन से कुछ अधिक ऊंचे हैं। विजयद्वार के समान सारा वर्णन कह देना चाहिये।
उस मुखमंडप की चारों (तीनों) दिशाओं में चार (तीन) द्वार कहे गये हैं। वे द्वार सोलह योजन ऊंचे, आठ योजन चौड़े और आठ योजन प्रवेश वाले हैं आदि वर्णन विजय द्वार के समान वनमाला तक समझना चाहिये। इसी तरह प्रेक्षागृह मंडपों के विषय में समझना चाहिये। मुखमंडपों के समान ही उनका प्रमाण एवं द्वार हैं। विशेषता यह है कि बहुमध्य भाग में प्रेक्षागृहमंडपों के अखाडे, मणिपीठिका आठ योजन प्रमाण, परिवार रहित सिंहासन यावत् मालाएं, स्तूप आदि चारों दिशाओं में उसी प्रकार कह देने चाहिये। विशेषता यह है कि वे सोलह योजन से कुछ अधिक प्रमाण वाले और कुछ अधिक सोलह योजन ऊंचे हैं शेष सारा वर्णन जिन प्रतिमा तक करना चाहिये। चारों दिशाओं में चैत्यवृक्ष हैं। उनका प्रमाण विजया राजधानी के चैत्यवृक्षों के समान है। विशेषता यह है कि मणिपीठिका सोलह योजन प्रमाण है। उन चैत्य वृक्षों की चारों दिशाओं में चार मणिपीठिकाएं हैं जो आठ योजन चौड़ी, चार योजन मोटी है। उन पर चौसठ योजन ऊंची, एक योजन गहरी, एक योजन चौड़ी महेन्द्रध्वजा है। शेष सारा वर्णन पूर्ववत् समझ लेना चाहिये।
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