Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र •••••••••••••••••••••••••••••••••••••...........................
. पुष्करोद समुद्र का वर्णन पुक्खरवरणं दीवं पुक्खरोदे णामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिए जाव संपरिक्खित्ताणं चिट्ठइ॥
पुक्खरोदे णं भंते! समुद्दे केवइयं चक्कवालविक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते?
गोयमा! संखेज्जाइं जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं संखेज्जाइं जोयणसयसहस्साइं परिक्खेवेणं पण्णत्ते॥
भावार्थ - पुष्करवरद्वीप को गोल और वलयाकार संस्थान से संस्थित पुष्करोद नामकं समुद्र सब ओर से घेरे हुए स्थित है।
प्रश्न - हे भगवन् ! पुष्करोद समुद्र का चक्रवाल विष्कंभ कितना है और उसकी कितनी परिधि है ?
उत्तर - हे गौतम! पुष्करोद समुद्र का चक्रवाल विष्कंभ संख्यात लाख योजन का है और उसकी परिधि भी संख्यात लाख योजन की है।
पुक्खरोदस्स णं भंते! समुद्दस्स कइ दारा पण्णत्ता?
गोयमा! चत्तारि दारा पण्णत्ता तहेव सव्वं पुक्खरोदसमुद्दपुरथिमपेरंते वरुणवरदीवपुरस्थिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं एत्थ णं पुक्खरोदस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते, एवं सेसाणवि। दारंतरंमि संखेज्जाइं जोयणसयसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। पएसा जीवा य तहेव।
से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ-पुक्खरोदे समुद्दे पुक्खरोदे समुद्दे ?
गोयमा! पुक्खरोदस्स णं समुदस्स उदगे अच्छे पत्थे जच्चे तणुए फलिहवण्णाभे पगईए उदगरसेणं सिरिधरसिरिप्पभा य० दो देवा महिड्डिया जाव पलिओवमट्ठिइया परिवसंति, से एएणद्वेणं जाव णिच्चे।
पुक्खरोदे णं भंते! समुद्दे केवइया चंदा पभासिंसु वा ३?० संखेजा चंदा पभासेंसु वा ३ जाव तारागणकोडिकोडीओ सोभेसु वा ३॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! पुष्करोद समुद्र के कितने द्वार कहे गये हैं ?
उत्तर - हे गौतम! पुष्करोद समुद्र के चार द्वार कहे गये हैं इत्यादि वर्णन पूर्वानुसार कह देना चाहिये यावत् पुष्करोद समुद्र के पूर्व दिशा के अन्त में और वरुणवरद्वीप के पूर्वार्द्ध के पश्चिम में
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