Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र •••••••••••••••••••••••••••••••rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr... गोलाकार संस्थित, महया हयणट्टगीयवाइयतंतीतलताल तुडियघणमुइंगपडुप्पवाइयरवेणं- जोर से बज़ने वाले वाद्यों, नृत्यों, गीतों, वादिन्त्रों, तंत्री, ताल, त्रुटित, मृदंग आदि की मधुर ध्वनि से युक्त, उक्किट्ठसीहणायबोलकलकलसद्देणं - महतोत्कृष्ट सिंहनादबोलकलकलशब्देन-हर्ष से सिंहनाद, बोल मुख से सीटी बजाते हुए और कल कल ध्वनि करते हुए, पव्वयरायं - पर्वतराज मेरु, पयाहिणावत्तमंडलयारं - प्रदक्षिणावर्तमंडल गति से, अणुपरियडंति - परिक्रमा करते हैं। .
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! मनुष्य क्षेत्र के अंदर जो चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारागण हैं वे ज्योतिषी देव क्या ऊर्ध्व विमानों में उत्पन्न हुए हैं, सौधर्म आदि कल्पों में उत्पन्न हुए हैं, विमानों में उत्पन्न हुए हैं, गति शील हैं या गति रहित हैं, गति में रति करने वाले हैं और गति को प्राप्त हुए हैं ? ..
उत्तर - हे गौतम ! वे देव ऊर्ध्व विमानों में उत्पन्न नहीं हुए हैं, बारह देवलोकों में उत्पन्न नहीं हुए हैं किंतु ज्योतिषी विमानों में उत्पन्न हुए हैं। वे गतिशील है, स्थितिशील नहीं हैं, गति में उनकी रति है
और वे गति प्राप्त हैं। वे ऊर्ध्वमुख कदम्बपुष्प की तरह गोल आकृति से संस्थित हैं हजारों योजन प्रमाण उनका तापक्षेत्र है, विक्रिया द्वारा नाना रूपधारी बाह्य परिषद् के देवों से युक्त हैं। जोर से बजने वाले वाद्यों, नृत्यों, गीतों, वादिन्त्रों, तंत्री, ताल, त्रुटित, मृदंग आदि की मधुर ध्वनि के साथ दिव्य भोग भोगते हुए हर्ष से सिंहनाद, बोल और कलकल ध्वनि करते हुए स्वच्छ पर्वतराज मेरुं की प्रदक्षिणावर्त . मंडलगति से परिक्रमा करते रहते हैं।
जया णं भंते! तेसिं देवाणं इंदे चवइ से कहमिदाणिं पकरेंति?
गोयमा! ताहे चत्तारि पंच सामाणिया तं ठाणं उवसंपजित्ताणं विहरंति जाव तत्थ अण्णे इंदे उववण्णे भवइ॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जब उन ज्योतिषी देवों का इन्द्र चवता है तब वे देव क्या करते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! जब उन ज्योतिषी देवों का इन्द्र चवता है तब इन्द्र के विरह में चार-पांच सामानिक देव सम्मिलित रूप से उस इन्द्र के स्थान पर तब तक कार्यरत रहते हैं जब तक वहां दूसरा इन्द्र उत्पन्न नहीं होता है।
इंदट्ठाणे णं भंते! केवइयं कालं विरहिए उववाएणं पण्णत्ते? गोयमा! जहण्णेणं एक्कं समयं उकोसेणं छम्मासा॥
बहिया णं भंते! मणुस्सखेत्तस्स जे चंदिमसूरियगहणक्खत्ततारारूवा ते णं भंते! देवा किं उड्डोववण्णगा कप्पोववण्णगा विमाणोववण्णगा चारोववण्णगा चारद्विइया गइरइया गइसमावण्णगा?
गोयमा! ते णं देवा णो उड्डोववण्णगा णो कप्पोववण्णगा विमाणोववण्णगा णो
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