Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
तृतीय प्रतिपत्ति - जंबू वृक्ष का वर्णन
१३५
उस जंबू वृक्ष की ऊपरी शाखा पर एक विशाल सिद्धायतन है जो एक कोस लम्बा, आधा कोस चौड़ा और देशोन एक कोस ऊंचा है तथा अनेक सौ खंभों पर प्रतिष्ठित है आदि वर्णन कह देना चाहिये। उसकी तीनों दिशाओं में तीन द्वार कहे गये हैं जो पांच सौ धनुष, ऊंचे, ढाई सौ धनुष चौड़े हैं। पांच सौ धनुष की मणिपीठिका है। उस पर पांच सौ धनुष चौड़ा और कुछ अधिक पांच सौ धनुष ऊंचा देवच्छंदक है। उस देवच्छंदक में जिनोत्सेध प्रमाण एक सौ आठ जिनप्रतिमाएं हैं, इस प्रकार पूरा सिद्धायतन का वर्णन कह देना चाहिये यावत् वहां धूपकडुच्छक है। वह उत्तम आकार का है और सोलह रत्नों से युक्त है। यह सुदर्शना (जंबू) मूल में बारह पद्मवरवेदिकाओं से चारों ओर घिरी हुई है। वे पद्मवरवेदिकाएं आधा योजन ऊंची पांच सौ धनुष चौड़ी है। यहां पद्मवरवेदिका का वर्णनक कह देना चाहिये।
जंबू णं सुदंसणा अण्णेणं अट्ठसएणं जंबूणं तयधुच्चत्तप्पमाणमेत्तेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता। ताओ णं जंबूओ चत्तारि जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं कोसं चोव्वेहेणं जोयणं खंधो कोसं विक्खंभेणं तिण्णि जोयणाई विडिमा बहुमज्झदेसभाए चत्तारि जोयणाइं विक्खंभेणं साइरेगाइं चत्तारि जोयणाइं सव्वग्गेणं वइरामयमूला सो चेव चेइयरुक्खवण्णओ॥ जंबूए णं सुदंसणाए अवरुत्तरेणं उत्तरेणं उत्तरपुरथिमेणं एत्थ णं अणाढियस्स देवस्स चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं चत्तारि जंबूसाहस्सीओ, पण्णत्ताओ जंबूए णं सुदंसणाए पुरथिमेणं एत्थ णं अणाढियस्स देवस्स चउण्हं अग्गमहिसीणं चत्तारि जंबूओ पण्णत्ताओ, एवं परिवारो सव्वो णायव्वो जंबूए जाव आयरक्खाणं॥ ___भावार्थ - यह जंबू सुदर्शना एक सौ आठ अन्य उससे आधी ऊंचाई वाली जंबुओं से चारों ओर घिरी हुई है। वे जंबू चार योजन ऊंची, एक कोस जमीन में गहरी है, एक योजन का उनका स्कंध, एक योजन का विष्कंभ और तीन योजन तक फैली शाखाएं हैं। उनका मध्यभाग में चार योजन का विष्कम्भ है और चार योजन से अधिक उनकी समग्र ऊंचाई है। उनके वज्रमय मूल हैं आदि चैत्यवृक्ष का वर्णन यहां कह देना चाहिये।
जंबू सुदर्शना के पश्चिमोत्तर में, उत्तर में और उत्तर पूर्व में अनादृत देव के चार हजार सामानिक देवों के चार हजार जंबू हैं। जंबू सुदर्शना के पूर्व में अनादृत देव की चार अग्रमहिषियों के चार जंबू हैं इस प्रकार समस्त परिवार यावत् आत्मरक्षकों के जंबूओं का कथन करना चाहिये। ___जंबू णं सुदंसणा तिहिं जोयणसएहिं वणसंडेहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता, तंजहा-पढमेणं दोच्चेणं तच्चेणं। जंबूए णं सुदंसणाए पुरथिमेणं पढम वणसंडं पण्णासं जोयणाइं ओगाहित्ता एत्थ णं एगे महं भवणे पण्णत्ते, पुरथिमिल्ले भवणसरिसे
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org