Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति - लवण समुद्र का संस्थान आदि
१७९
लवणे णं भंते! समुद्दे केवइयं चक्कवालविक्खंभेणं? केवइयं परिक्खेवेणं? केवइयं उव्वेहेणं? केवइयं उस्सेहेणं? केवइयं सव्वगेणं पण्णत्ते?,
गोयमा! लवणे णं समुद्दे दो जोयणसयसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं, पण्णरस जोयणसयसहस्साई एक्कासीइं च सहस्साइं सयं च इगुयालं किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं, एगं जोयणसहस्सं उव्वेहेणं सोलस जोयणसहस्साइं उस्सेहेणं सत्तरस जोयणसहस्साइं सब्बग्गेणं पण्णत्ते॥१७२॥
कठिन शब्दार्थ - सिप्पिसंपुडसंठिए - शुक्तिकासंपुटसंस्थान संस्थितः-सीप के पुट के आकार का, आसखंधसंठिए - अश्व स्कन्ध संस्थितः-घोड़े के स्कंध के आकार का, वलभिसंठिए - वलभीसंस्थितः-वलभीगृह (छज्जे वाला घर) के आकार का, सव्वग्गेणं - समग्र रूप से।
भावार्थ - प्रश्न - - हे भगवन् ! लवण समुद्र का संस्थान किस प्रकार का कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! लवण समुद्र गोतीर्थ के आकार का, नाव के आकार का, सीप के पुट के आकार का, घोड़े के स्कंध के आकार का, वलभी गृह के आकार का, वर्तुल और वलयाकार संस्थान वाला है।
... प्रश्न - हे भगवन! लवण समुद्र का चक्रवाल-विष्कम्भ (मोलाई वाले क्षेत्र की चौडाई) कितना है, उसकी परिधि कितनी है? उसकी गहराई कितनी है, उसकी ऊंचाई कितनी है, उसका समग्र प्रमाण कितना कहा गया है? . . .
उत्तर - हे गौतम! लवण समुद्र का चक्रवाल विष्कम्भ दो लाख योजन का है, परिधि पन्द्रह लाख इक्यासी हजार एक सौ उनचालीस (१५८११३९) योजन से कुछ कम है उसकी गहराई एक हजार योजन, उत्सेधं (ऊंचाई) सोलह हजार योजन का है। उद्वेध और उत्सेध दोनों मिलाकर समग्र रूप से उसका प्रमाण सतरह हजार योजन का है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में लवण समुद्र का संस्थान, चक्रवाल विष्कम्भ, परिधि, गहराई, ऊंचाई और समग्र प्रमाण का कथन किया गया है। लवण समुद्र का संस्थान बताने के लिए सूत्रकार ने जो विशेषण दिये हैं वे इस प्रकार हैं -
लवण समुद्र क्रमशः निम्न निम्नतर गहराई बढ़ने के कारण गोतीर्थ के आकार का कहा गया है। दोनों तरफ समतल भूभाग की अपेक्षा क्रम से जलवृद्धि होने के कारण नाव के आकार का कहा गया है। उद्वेध का जल और जलवृद्धि का जल एकत्रित मिलने की अपेक्षा से सीप के पुट के आकार का कहा गया है। दोनों तरफ ९५ हजार योजन पर्यन्त उन्नत होने से सोलह हजार योजन प्रमाण ऊंची
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