Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति - मानुषोत्तर पर्वत का वर्णन
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पद्मवनखण्ड नित्य कुसुमित रहते हैं। पद्म और महापद्म वृक्षों पर पद्म और पुंडरीक नाम के पल्योपम की स्थिति वाले दो महर्द्धिक देव रहते हैं। इसलिये पुष्करवरद्वीप पुष्करवरद्वीप कहलाता है यावत् नित्य है।
पुक्खरवरे णं भंते! दीवे केवइया चंदा पभासिंसु वा ३? एवं पुच्छा, ... चोयालं चंदसयं चउयालं चेव सूरियाण सयं। पुक्खरवरदीवंमि चरंति एए पभासेंता॥१॥ चत्तारि सहस्साई बत्तीसं चेव होंति णक्खत्ता। छच्च सया बावत्तर महग्गहा बारह सहस्सा॥२॥ छण्णउइ सयसहस्सा चत्तालीसं भवे सहस्साइं। चत्तारि सया पुक्खर वर) तारागणकोडिकोडीणं॥३॥सोभेसु वा॥३॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पुष्करवरद्वीप में कितने चन्द्र उद्योत करते थे, उद्योत करते हैं, उद्योत करेंगे? आदि प्रश्न। ,
उत्तर - हे गौतम! पुष्करवरद्वीप में एक सौ चवालीस (१४४) चन्द्र और एक सौ चवालीस सूर्य प्रभासित होते हुए विचरते हैं ॥१॥ चार हजार बत्तीस (४०३२) नक्षत्र और बारह हजार छह सौ बहत्तर (१२६७२) महाग्रह हैं॥ २॥ छियानवै लाख चवालीस हजार चार सौ (९६४४४००) कोडाकोडी तारागण शोभित होते थे, शोभित होते हैं और शोभित होंगे॥..
. मानुषोत्तर पर्वत का वर्णन ____ पुक्खरवरदीवस्स णं बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं माणुसुत्तरे णामं पव्वए पण्णत्ते, वट्टे वलयागारसंठाणसंठिए जे णं पुक्खरवरं दीवं दुहा विभयमाणे विभयमाणे चिट्ठइ, तंजहा-अबिभतरपुक्खरद्धं च बाहिरपुक्खरद्धं च॥
अब्भिंतरपुक्खरद्धे णं भंते! केवइयं चक्कवालेणं परिक्खेवेणं पण्णत्ते? गोयमा! अट्ठ जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं कोडी बायालीसा तीसं दोण्णि य सया अगुणवण्णा। पुक्खरअद्धपरिरओ एवं च मणुस्सखेत्तस्स॥१॥
भावार्थ - पुष्करवरद्वीप के बहुमध्य देशभाग में मानुषोत्तर नामक पर्वत है जो गोल है और वलयाकार संस्थान से संस्थित है। वह पुष्करवरद्वीप को दो भागों में विभाजित करता है। वे इस प्रकार हैं - १. आभ्यन्तर पुष्करार्द्ध और २. बाह्य पुष्कराद्ध।
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