Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति - समय क्षेत्र (मनुष्य क्षेत्र) का वर्णन
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भावार्थ - सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र (उपलक्षण से तारागण) इतनी संख्या में मनुष्य लोक में कहे गये हैं। इनके नाम, गोत्र (अन्वर्थयुक्त नाम) आदि तीर्थंकरों के अलावा सामान्य व्यक्ति कदापि नहीं कह सकते हैं अतः इनको सर्वज्ञों द्वारा उपदिष्ट (कथित) मान कर सम्यक् रूप से इन पर श्रद्धा करनी चाहिये।
छावट्ठी पिडगाइं चंदाइच्चाण मणुयलोगंमि। दो चंदा दो सूरा य होंति एक्केक्कए पिडए॥४॥ कठिन शब्दार्थ - पिडगाइं - पिटकों में, छावट्ठी - छासठ (६६)।
भावार्थ - इन मनुष्य लोक में चन्द्रों और सूर्यों के ६६-६६ पिटक हैं। एक एक पिटक में दो चन्द्र दो सूर्य होते हैं। - विवेचन - जंबूद्वीप में एक, लवण समुद्र में दो, धातकीखण्ड में छह, कालोदधि में २१, अर्द्धपुष्करवरद्वीप में ३६, इस तरह कुल मिला कर (१+२+६+२१+३६-६६) छासठ पिटक चन्द्रों एवं छासठ पिटक सूर्यों के होते हैं।
- क्षेत्र रूपी पेटी अर्थात् दो चन्द्र दो सूर्य के फिरने का चक्रवाल क्षेत्र अथवा उन चन्द्र सूर्य आदि के समूह को भी पिटक कहते हैं। ___ छावट्ठी पिडगाइं णक्खत्ताणं तु मणुयलोगंमि।
छप्पण्णं णक्खत्ता य होंति एक्केक्कए पिडए॥५॥ भावार्थ - मनुष्य लोक में नक्षत्रों के ६६ पिटक हैं। एक एक पिटक में छप्पन छप्पन नक्षत्र हैं। छावट्ठी पिडगाइं महागहाणं तु मणुयलोगंमि। छावत्तरं गहसयं च होइ एक्केक्कए पिडए॥६॥ भावार्थ - मनुष्य लोक में महाग्रहों के ६६ पिटक हैं। एक एक पिटक में १७६-१७६ महाग्रह हैं। चत्तारि य पंतीओ चंदाइच्चाण मणुयलोगंमि। छावट्ठिय छावट्ठिय होइ य एक्केक्कया पंती॥७॥
भावार्थ - इस मनुष्य लोक में चन्द्रों और सूर्यों की चार चार पंक्तियां हैं। एक एक पंक्ति में ६६-६६ चन्द्र सूर्य हैं। 'छप्पण्णं पंतीओ णक्खत्ताणं तु मणुयलोगंमि। छावट्ठी छावट्ठी हवइ य एक्केक्कया पंती॥८॥ भावार्थ - इस मनुष्य लोक में नक्षत्रों की ५६ पंक्तियां हैं। एक एक पंक्ति में ६६ -६६ नक्षत्र हैं।
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