Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति - देवद्वीप आदि में चन्द्र द्वीप आदि
१७१
पुरथिमिल्लाओ वेइयंताओ जाव रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पुरत्थिमेणं देवद्दीवं समुदं असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थ णं देवदीवयाणं चंदाणं चंदाओ णामं रायहाणीओ पण्णत्ताओ, सेसं तं चेव, देवदीवचंदा दीवा, एवं सूराणवि, णवरं पच्चथिमिल्लाओ वेइयंताओ पच्चत्थिमेणं च भाणियव्वा तंमि चेव समुद्दे॥
भावार्थ - हे भगवन् ! देव द्वीपगत चन्द्रों के चन्द्रद्वीप कहां कहे गये हैं ?
हे गौतम! देवद्वीप की पूर्व दिशा के वेदिकान्त से देवोद समुद्र में बारह हजार योजन आगे जाने पर वहां देवद्वीप के चंद्रों के चन्द्रद्वीप हैं इत्यादि वर्णन पूर्वानुसार राजधानी तक कह देना चाहिये। अपने ही चन्द्रद्वीपों की पश्चिम दिशा से उसी देवद्वीप में असंख्यात हजार योजन जाने पर वहां देवद्वीप के चन्द्रों की चन्द्रा नामक राजधानियां हैं। शेष वर्णन विजया राजधानी के अनुसार कह देना चाहिये।
हे भगवन्! देवद्वीपगत सूर्यों के सूर्य द्वीप कहां हैं? . हे गौतम! देवद्वीप के पश्चिमी वेदिकान्त से देवोद समुद्र में बारह हजार योजन जाने पर देवद्वीप के सूर्यों के सूर्यद्वीप हैं। अपने अपने सूर्यद्वीपों की पूर्व दिशा में उसी देवद्वीप में असंख्यात हजार योजन जाने पर उनकी राजधानियां हैं। ___ कहि णं भंते! देवसमुद्दगाणं चदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता? गोयमा! देवोदगस्स समुहस्स पुरथिमिल्लाओ वेइयंताओ देवोदगं समुदं पचत्थिमेणं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता तेणेव कमेणं जाव रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पच्चत्थिमेणं देवोदगं समदं असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थ णं देवोदगाणं चंदाणं चंदाओ णामं रायहाणीओ पण्णत्ताओ, तं चेव सव्वं एवं सूराणणि, णवरि देवोदगस्स पच्चत्थिमिल्लाओ वेइयंताओ देवादगसमुदं पुरथिमेणं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता रायहाणीओ सगाणं सगाणं दीवाणं पुरत्थिमेणं देवोदगं समुदं असंखेजाइं जोयणसहस्साइं॥ एवं णागे जक्खे भूएवि चउण्हं दीवसमुद्दाणं।
भावार्थ- प्रश्न- हे भगवन ! देव समुद्र के चन्द्रों के चन्द्र नामक द्वीप कहां हैं?
उत्तर - हे गौतम! देवोदक समुद्र के पूर्वी वेदिकान्त से देवोदक समुद्र में पश्चिम दिशा में बारह हजार योजन जाने पर देवसमुद्र के चन्द्रों के चन्द्रद्वीप है आदि क्रम से राजधानी तक कह देना चाहिये। उनकी राजधानियां अपने अपने द्वीपों के पश्चिम में देवोदक समुद्र में असंख्यात हजार योजन जाने पर आती है। शेष वर्णन विजया राजधानी के समान कह देना चाहिये।
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