Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति- कालोदधि समुद्र के चन्द्रद्वीपों आदि का वर्णन
योजन आगे जाने पर कालोदधि समुद्र के चन्द्रों के चन्द्रद्वीप हैं । ये सब ओर से जलांत से दो कोस ऊंचे हैं। शेष सारा वर्णन पूर्ववत् कह देना चाहिये यावत् राजधानियां अपने अपने द्वीप के पूर्व में असंख्य द्वीप समुद्रों के बाद अन्य कालोदधि समुद्र में बारह हजार योजन जाने पर आती है, आदि सारा वर्णन पूर्वानुसार कह देना चाहिये यावत् वहां चन्द्र देव हैं।
इसी प्रकार कालोदधि समुद्र के सूर्य द्वीपों के विषय में समझना चाहिये । विशेषता यह है कि कालोदधि समुद्र के पश्चिमी वेदिकान्त से और कालोदधि समुद्र के पूर्व में बारह हजार योजन जाने पर ये द्वीप आते हैं। इसी तरह पूर्वानुसार समझना चाहिये यावत् इनकी राजधानियां अपने अपने द्वीपों के पश्चिम में अन्य कालोदधि में हैं आदि सारा वर्णन पूर्ववत् कह देना चाहिये। इसी प्रकार पुष्करवरद्वीप के पूर्वी वेदिकान्त से पुष्करवरसमुद्र में बारह हजार योजन आगे जाने पर चन्द्रद्वीप हैं इत्यादि पूर्वानुसार समझना चाहिये । अन्य पुष्करवरद्वीप में उनकी राजधानियां हैं। राजधानियों के विषय में सारा वर्णन पूर्वानुसार है । इसी तरह पुष्करवरद्वीप के सूर्यों के सूर्यद्वीप पुष्करवरद्वीप के पश्चिमी वेदिकान्त से पुष्करवर समुद्र में बारह हजार योजन आगे जाने पर आते हैं आदि पूर्वानुसार जानना चाहिये यावत् राजधानियां अपने द्वीपों की पश्चिमी दिशा में तिरछे असंख्यात द्वीप समुद्रों को पार करने पर अन्य पुष्करवर द्वीप में बारह हजार योजन की दूरी पर हैं ।
इसी प्रकार शेष द्वीपगत चन्द्रों की चन्द्रद्वीपगत पूर्व दिशा की वेदिकान्त से अन्य समुद्र में बारह हजार योजन जाने पर कहनी चाहिये। शेष द्वीपगत सूर्यों के सूर्यद्वीप अपने द्वीपगत पश्चिमी वेदिकान्त से अन्य समुद्र में है। चन्द्रों की राजधानियां अपने अपने चन्द्रद्वीपों से पूर्व दिशा में अन्य अपने अपने नाम वाले द्वीप में हैं सूर्यों की राजधांनियां अपने अपने सूर्य द्वीपों से पश्चिम दिशा में अन्य अपने अपने नाम वाले द्वीप में बारह हजार योजन के बाद हैं।
शेष समुद्र के चन्द्रों के चन्द्रद्वीप अपने अपने समुद्र के पूर्व वेदिकान्त से पश्चिमी दिशा में बारह हजार योजन के बाद हैं। सूर्यों के सूर्यद्वीप अपने अपने समुद्र के पश्चिमी वेदिकान्त से पूर्व दिशा में बारह हजार योजन के बाद हैं । चन्द्रों की राजधानियां अपने अपने द्वीपों की पूर्व दिशा में अन्य अपने जैसे नाम वाले समुद्रों में हैं। सूर्यों की राजधानियां अपने अपने द्वीपों की पश्चिम दिशा में हैं।
इमे णामा अणुगंतव्वा
जंबुद्दीवे लवणे धायइ कालोद पुक्खरे वरुणे ।
खीर घय इक्खु( वरो य ) गंदी अरुणवरे कुंडले रुयगे ॥ १ ॥ आभरण-वत्थ-गंधे उप्पल-तिलए य पुढवि णिहि - रयणे । वासहर - दह - ईओ विजया वक्खार- कप्पिंदा ॥ २ ॥
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