Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
तृतीय प्रतिपत्ति- धातकीखण्ड के चन्द्र द्वीपों आदि का वर्णन
जोयणस्स दो कोसे ऊसिया सेसं तहेव जाव रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पच्चत्थिमेणं तिरियमसंखेज्जे लवणे चेव बारस जोयणा तहेव सव्वं भाणियव्वं ॥ १६३ ॥
भावार्थ - हे भगवन् ! बाह्य लावणिक सूर्यों के सूर्यद्वीप कहां हैं?
४०
हे गौतम! लवण समुद्र की पश्चिमी वेदिकान्त से लवण समुद्र के पूर्व में बारह हजार योजन जाने पर बाह्य लावणिक सूर्यों के सूर्यद्वीप हैं जो धातकीखंड द्वीपांत की ओर साढे अठ्यासी (८८३) योजन और हैं, योजन जलांत से ऊपर हैं और लवण समुद्र की तरफ जलांत से दो कोस ऊंचे हैं। शेष सारी वक्तव्यता राजधानी पर्यंत पूर्वानुसार कह देनी चाहिये। ये राजधानियां अपने अपने द्वीपों से पश्चिम में तिरछे असंख्यात द्वीप समुद्र पार करने के बाद अन्य लवण समुद्र में बारह हजार योजन आगे जाने पर स्थित हैं, आदि सारा वर्णन कह देना चाहिये ।
विवेचन - सभी चन्द्रमाओं के द्वीप पूर्व दिशा में आये हुए हैं। इसका कारण यह है कि चन्द्रमा महर्द्धिक होने से उसके लिए पूर्व दिशा की व्यवस्था है। सभी सूर्यों के द्वीप पश्चिम दिशा में आये हुए हैं। चन्द्रमा से सूर्य अल्पर्द्धिक होने से उनके लिए पश्चिम दिशा की व्यवस्था है। यहां पर क्षेत्र दिशा (मेरु पर्वत के रुचक प्रदेशों से प्रारम्भ हुई) से उपर्युक्त वर्णन समझना चाहिये ।
धातकीखंड के चन्द्र द्वीपों आदि का वर्णन
१६७
कहि ण भंते! धायइसंडदीवगाणं चंदाणं चंददीवा० पण्णत्ता ?
गोयमा! धायइसंडस्स दीवस्स पुरत्थिमिल्लाओ वेइयंताओ कालोयं णं समुद्दं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थ णं धायइसंडदीवाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता, सव्वओ समंता दो कोसा ऊसिया जलंताओ बारस जोयणसहस्साइं तहेव विक्खंभपरिक्खेवो भूमिभागो पासायवडिंसया मणिपेढिया सीहासणा सपरिवारा अट्ठो तहेव रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पुरत्थिमेणं अण्णंमि धायइसंडे दीवे सेसं तं चेव, एवं सूरदीवावि, णवरं धायइसंडस्स दीवस्स पच्चत्थिमिल्लाओ वेइयंताओ कालोयं णं समुहं बारस जोयण० तहेव सव्वं जाव रायहाणीओ सूराणं दीवाणं पच्चत्थिमेणं अण्णंम धायइसंडे दीवे सव्वं तहेव ॥ १६४॥
भावार्थ - हे भगवन् ! धातकीखंडद्वीप के चन्द्रों के चन्द्र द्वीप कहां हैं ?
हे गौतम! धातकीखंड द्वीप की पूर्वी वेदिकान्त से कालोदधि समुद्र में बारह हजार योजन आगे जाने पर धातकीखंड के चन्द्रों के चन्द्रद्वीप हैं । वे सब ओर से जलांत से दो कोस ऊंचे हैं। ये बारह
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org