Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
१६०
जीवाजीवाभिगम सूत्र
__गौतमद्वीप का वर्णन कहि णं भंते! सुट्ठियस्स लवणाहिवइस्स गोयमदीवे णामं दीवे पण्णत्ते?
गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं लवणसमुदं बारसजोयणसहस्साई ओगाहित्ता एत्थ णं सुट्टियस्स लवणाहिवइस्स गोयमदीवे णाम दीवे पण्णत्ते, बारसजोयणसहस्साई आयामविक्खंभेणं सत्ततीसं जोयणसहस्साइं णव य अडयाले जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं जंबूदीवंतेणं अद्धेगूणणउए जोयणाई चत्तालीसं पंचणउइभागे जोयणस्स ऊसिए जलंताओ लवणसमुदंतेणं दो कोसे ऊसिए जलंताओ॥
कठिन शब्दार्थ - लवणाहिवइस्स - लवणाधिपति का, सुट्ठियस्स - सुस्थित देव का, जलंताओजलान्त से।
" भावार्थ - हे भगवन्! लवणाधिपति सुस्थित देव का गौतम द्वीप कहां है? ___हे गौतम! जंबूद्वीप के मेरु पर्वत के पश्चिम में लवण समुद्र में बारह हजार योजन आगे जाने पर लवणाधिपति सुस्थित देव का गौतम द्वीप नाम का द्वीप है। वह गौतम द्वीप बारह हजार योजन लम्बा चौड़ा और सैंतीस हजार नौ सौ अड़तालीस (३७९४८).योजन से कुछ कम परिधि वाला है। यह जंबूद्वीप के अन्त की दिशा में साढ़े अठ्यासी (८८१) योजन १० योजन जलान्त से ऊपर ऊठा हुआ है तथा लवण समुद्र की ओर जलान्त से दो कोस ऊपर उठा हुआ है। ___ से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सब्बओ समंता तहेव वण्णओ दोण्हवि।
गोयमदीवस्स णं दीवस्स अंतो जाव बहुसमरमणिजे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए - आलिंग० जाव आसयंतिः। तस्स णं बहुसमरमणिजस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभागे एत्थ णं सुट्टियस्स लवणाहिवइस्स एगे महं अइक्कीलावासे णामं भोमेजविहारे पण्णत्ते बावढि जोयणाइं अद्धजोयणं उर्ल्ड उच्चत्तेणं एक्कत्तीसं जोयणाई कोसंच विक्खंभेणं अणेगखंभसयसण्णिविढे सव्वो भवणवण्णओ भाणियव्वो।
अइक्कीलावासस्स णं भोमेजविहारस्स अंतो बहुसमरमणिजे भूमिभागे पण्णत्ते जाव मणीणं फासो।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org