Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
७०
- जीवाजीवाभिगम सूत्र ......................0000000000000000000000000000000000000000 वे प्रासादावतंसक अन्य उनसे आधी ऊंचाई वाले चार प्रासादावतंसकों से चारों ओर से घिरे हुए हैं। वे प्रासादावतंसक इकतीस योजन एक कोस की ऊंचाई वाले साढे पन्द्रह योजन और आधा कोस के लम्बे चौड़े किरणों से युक्त आदि वैसा ही वर्णन कर लेना चाहिये। उन प्रासादावतंसकों के अंदर बहुसमरमणीय भूमिभाग यावत् चित्रित भीतरी छत है।
तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं पत्तेयं सीहासणं पण्णत्तं, वण्णओ, तेसिं परिवारभूया बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं पत्तेयं भद्दासणा पण्णत्ता, तेसि णं अट्ठट्ठमंगलगा झया छत्ताइछत्ता। ते णं पासायवडिंसगा अण्णेहिं चउहिं चउहिं तदर्धच्चत्तप्पमाणमेत्तेहिं पासायवडेंसएहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता। ते णं पासायवडेंसगा अद्धसोलसजोयणाइं अद्धकोसंच उड्ढे उच्चत्तेणं देसूणाई अटु जोयणाई आयामविक्खंभेणं अब्भुग्गय०तहेव, तेसि णं पासायवडेंसगाणं अंतो बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा उल्लोया, तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं पत्तेयं पउमासणा पण्णत्ता, तेसि णं पासायाणं अट्ठट्ठमंगलगा झया छत्ताइछत्ता। ते णं पासायवडेंसगा अण्णेहिं चउहिं तदधुच्चत्तप्पमाणमेत्तेहिं पासायवडेंसएहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता। ते णं पासायवडेंसगा देंसूणाई अट्ठ जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं देसूणाई चत्तारि जोयणाई आयामविक्खंभेणं अब्भुग्गय भूमिभागा उल्लोया, भद्दासणाई उवरि मंगलगा झया छत्ताइछत्ता। ते णं पासायवडिंसगा अण्णेहिं चउहिं तद्दधुच्चत्तप्पमाणमेत्तेहिं पासायवडिंसएहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता। ते णं पासायवडिंसगा देसूणाई चत्तारि जोयणाई उर्दू उच्चत्तेणं देसूणाई दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं अब्भुग्गयमुस्सिय० भूमिभागा उल्लोया। पउमासणाई उवरि मंगलगा झया छत्ताइछत्ता।। १३६॥ ___ भावार्थ - उन बहुसमरमणीय भूमिभाग के बहुमध्य देशभाग में प्रत्येक में अलग अलग सिंहासन है। सिंहासन का वर्णन कह देना चाहिये। उन सिंहासनों के परिवार के तुल्य वहां भद्रासन कहे गये हैं। इन प्रासादावतंसकों के ऊपर आठ आठ मंगल, ध्वजाएं और छत्रातिछत्र-छत्र के ऊपर छत्र हैं। - वे प्रासादावतंसक उनसे आधी ऊंचाई वाले अन्य चार प्रासादावतंसकों से चारों ओर से घिरे हुए हैं। वे प्रासादावतंसक साढे पन्द्रह योजन और आधे कोस के ऊंचे और कुछ कम आठ योजन की लम्बाई चौड़ाई वाले हैं किरणों से युक्त इत्यादि वर्णन कह देना चाहिये। उन प्रासादावतंसकों के अंदर
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org