Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र
अमयरससमरसफला अहियं, णयणमणणिव्वुइकरा, पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा॥
भावार्थ - उन चैत्यवृक्षों का वर्णन इस प्रकार हैं - उनके मूल वज्ररत्न के हैं, उनकी ऊर्ध्व विनिर्गत शाखाएं रजत की हैं और सुप्रतिष्ठित हैं, उनका कंद रिष्टरत्नमय है, उनका स्कंध वैडूर्य रत्न का है और रुचिर है, उनकी मूलभूत विशाल शाखाएं शुद्ध और श्रेष्ठ स्वर्ण की हैं उनकी विविध शाखा-प्रशाखाएं नाना मणिरत्नों की हैं, उनके पत्ते वैडूर्य रत्न के हैं, उनके पत्तों के वृन्त तपनीय स्वर्ण के हैं। जम्बूनद जाति के स्वर्ण के समान लाल, मृदु, सुकुमार प्रवाल और पल्लव तथा प्रथम उगने वाले अंकुरों को धारण करने वाले हैं अथवा उनके शिखर तथाविध प्रवाल, पल्लव अंकुरों से सुशोभित हैं, उन चैत्यवृक्षों की शाखाएं विचित्र मणिरत्नों के सुगंधित फूल और फलों के भार से झुकी हुई हैं। वे चैत्यवृक्ष सुंदर छाया वाले, सुंदर कांति वाले, किरणों से युक्त और उद्योत करने वाले हैं। अमृत रस के फलों के समान उनके फलों का रस है। वे नेत्र और मन को अत्यंत तृप्ति देने वाले हैं, प्रसन्नता देने वाले, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप हैं।
ते णं चेइयरुक्खा अण्णेहिं बहूहिं तिलय-लवय-छत्तोवग-सिरीस-सत्तवण्णदहिवण्ण-लोद्ध-धव-चंदण-णीव-कुडय-कर्यब-पणस-तालतमाल-पियाल-पियंगुपारावयरायरुक्ख-णंदिरुक्खेहि सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता॥ ते णं तिलया जाव णंदिरुक्खा, मूलवंतो कंदमंतो जाव सुरम्मा॥ते णं तिलया जाय णंदिरुक्खा अण्णेहिं बहूहिं पउमलयाहिं जाव सामलयाहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता, ताओ णं पउमलयाओ जाव सामलयाओ णिच्चं कुसुमियाओ जाव पडिरूवाओ। तेसि णं चेइयरुक्खाणं उप्पिं बहवे अट्ठमंगलगा झया छत्ताइछत्ता।
भावार्थ - वे चैत्यवृक्ष अन्य बहुत से तिलक, लवंग, छत्रोपक, शिरीष, सप्तपर्ण, दधिपर्ण, लोध्र, धव, चन्दन, नीप, कुटज, कदम्ब, पनस, ताल, तमाल, प्रियाल, प्रियंगु, पारापत, राजवृक्ष और नन्दिवृक्षों से सब ओर से घिरे हुए हैं। वे तिलक यावत् नन्दिवृक्ष मूल वाले हैं, कन्दवाले हैं, इत्यादि वृक्षों का वर्णन करना चाहिये यावत् वे सुरम्य हैं। वे तिलकवृक्ष यावत् नन्दिवृक्ष अन्य बहुत सी पद्मलताओं यावत् श्यामलताओं से घिरे हुए हैं। वे पद्मलताएं यावत् श्यामलताएं नित्य कुसुमित रहती हैं यावत् वे प्रतिरूप हैं। उन चैत्य वृक्षों के ऊपर बहुत से आठ-आठ मंगल, ध्वजाएं और छत्रों पर छत्र हैं।
तेसि णं चेइयरुक्खाणं पुरओ तिदिसिं तओ मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ, ताओ णं मणिपेढियाओ जोयणं आयामविक्खंभेणं अद्धजोयणं बाहल्लेणं सव्वमणिमईओ
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