Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति - वैजयंत आदि द्वारों का वर्णन
११९
गोयमा! अउणासीइं जोयणसहस्साइं वावण्णं च जोयणाई देसूणं च अद्धजोयणं दारस्स य २ अबाहाए अंतरे पण्णत्ते॥१४५॥
भावार्थ - हे भगवन् ! जंबूद्वीप के इन द्वारों में एक द्वार से दूसरे द्वार का अन्तर कितना कहा गया है ?
हे गौतम! जंबूद्वीप के इन द्वारों में एक द्वार से दूसरे द्वार का अन्तर उन्यासी हजार बावन योजन और देशोन आधा योजन का कहा गया है। विवेचन - एक द्वार से दूसरे द्वार का अन्तर बताने के लिए टीका में निम्न दो गाथाएं दी गयी हैकुड्डदुवारपमाणं अट्ठारस जोयणाइं परिहीए। सो हि य चउहिं विभत्तं इणमो दारंतर होइ॥१॥ अउन्नसीइं सहस्सा बावण्णा अद्धजोयणं णूणं। दारस्स य दारस्स य अंतरमेयं विणिद्दिटुं॥२॥
- प्रत्येक द्वार की शाखा रूप कुड्य (भीत) एक-एक कोस की मोटी है और प्रत्येक द्वार का विस्तार चार-चार योजन का है। इस तरह चारों द्वारों में भींत और द्वार प्रमाण १८ योजन का होता है। जंबूद्वीप की परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्तावीस योजन तीन कोस एक सौ आठ धनुष और साढे तेरह अंगुल से कुछ अधिक है। इसमें से चारों द्वारों और शाखा द्वारों का १८ योजन प्रमाण घटाने . पर परिधि का प्रमाण ३,१६,२०९ योजन तीन कोस एक सौ आठ धनुष और साढे तेरह अंगुल से
अधिक शेष रहता है। इसके चार विभाग करने पर ७९०५२ योजन.एक कोस १५३२ धनुष ३ अंगुल तीन यव आता है। इतना एक द्वार से दूसरे द्वार का अंतर होता है।
जंबुद्दीवस्स णं भंते! दीवस्स पएसा लवणं समुदं पुट्ठा? हंता पुट्ठा॥
ते .णं भंते! किं जंबूहीवे २ लवणसमुद्दे ? गोयमा! जंबुद्दीवे दोवे णो खलु ते लवणसमुद्दे॥
लवणस्स णं भंते! समुद्दस्स पएसा जंबुद्दीवं दीवं पुट्ठा? हंता पुट्ठा।
ते णं भंते! किं लवणसमुद्दे जंबुद्दीवे दीवे? गोयमा! लवणे णं ते समुद्दे णो खलु ते जंबुद्दीवे दीवे॥ .. कठिन शब्दार्थ - पएसा - प्रदेश, पुट्ठा - स्पृष्ट-छुए हुए।
भावार्थ - हे भगवन्! जंबूद्वीप नामक द्वीप के प्रदेश लवण समुद्र से स्पृष्ट हैं क्या? हाँ, गौतम! जंबूद्वीप के प्रदेश लवण समुद्र से स्पृष्ट हैं। हे भगवन् ! वे स्पृष्ट प्रदेश जंबूद्वीप रूप हैं या लवण समुद्र रूप? ..
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