Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र
भावार्थ - उस बहुसमरमणीय भूमिभाग के ठीक मध्य भाग में एक मणिपीठिका कही गई है। वह मणिपीठिका दो योजन लम्बी चौड़ी, एक योजन मोटी और सर्व मणिमय है। उस मणिपीठिका के ऊपर माणवक नामक चैत्य स्तंभ कहा गया है वह साढे सात योजन ऊंचा, आधा कोस ऊंडा और आधा कोस चौड़ा है। उसकी छह कोटियां हैं, छह कोण हैं और छह भाग हैं, वह वज्र का है, गोल है और सुंदर आकार वाला है। इस प्रकार महेन्द्र ध्वज के समान वर्णन कह देना चाहिये यावत् वह प्रसन्नता पैदा करने वाला यावत् प्रतिरूप हैं। उस माणवक चैत्य स्तंभ के ऊपर छह कोस ऊपर और छह कोस नीचे छोड़कर बीच के साढे चार योजन में बहुत से सोने-चांदी के फलक कहे गये हैं। उन सोने चांदी के फलकों में बहुत से वज्रमय नागदंतक हैं। उन वज्रमय नागदंतकों में बहुत से चांदी के छींके कहे गये हैं। उन रजतमय छींकों में बहुत से वज्रमय गोल समुद्गक (मंजूषा) कहे गये हैं। उन वज्रमय गोलवर्तुल समुद्गकों में बहुत-सी जिनसक्थाएं (पृथ्वीकाय की बनी हुई शाश्वत दाढाएं।) रखी हुई हैं। वे विजयदेव और अन्य बहुत से वाणव्यंतर देव और देवियों के लिये अर्चनीय, वंदनीय, पूजनीय, सत्कार योग्य, सम्मान योग्य कल्याणरूप. मंगलरूप.देवरूप, चैत्य रूप और पर्यपासना योग्य हैं। उस माणवक चैत्य स्तंभ के ऊपर आठ-आठ मंगल, ध्वजाएं और छत्रातिछत्र हैं।
विवेचन - मूल पाठ में जिणसकहाओ शब्द आया है उसका अर्थ जिनसक्थाएं होता है। जिनसक्थाएं का अर्थ है - पृथ्वीकाय नी बनी हुई शाश्वत दाढाएं। जिसे वे देव इस देवभव में मंगलकारी समझते हैं। मंगलरूप होने से उस पर उन देवों की भक्ति रहती है। वे उसे सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। जो जिणसकहाओ का अर्थ जिन अस्थियों करते हैं वह उचित नहीं है।
विजयदेव के भी जीवन में अनेक समस्याएं आने से अनेक बार जिनसक्था की पूजा का वर्णन है। युद्ध भी एक समस्या है।
तस्स णं माणवकस्स चेइयखंभस्स पुरच्छिमेणं एत्थ णं एगा महामणिपेढिया पण्णत्ता, सा णं मणिपेढिया दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं जोयणं बाहल्लेणं सव्वमणिमई जाव पडिरूवा॥ तीसे णं मणिपेढियाए उप्पिं एत्थ णं एगे महं सीहासणे पण्णत्ते, सीहासण्णओ॥ तस्स णं माणवगस्स चेइय खंभस्स पच्चत्थिमेणं एत्थ णं एगा महं मणिपेढिया पण्णत्ता जोयणं आयामविक्खंभेणं अद्धजोयणं बाहल्लेणं सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा॥ तीसे णं मणिपेढियाए उप्पिं एत्थ णं एगे महं देवसयणिज्जे पण्णत्ते, तस्स णं देवसयणिज्जस्स अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तंजहा-णाणामणिमया पडिपाया सोवणिया पाया णाणामणिमया पायसीसा जंबूणयमयाइं गत्ताइं वइरामया संधी णाणामणिमए चिच्चे रययामया तुली
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