Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति - विजयदेव का उपपात और उसका अभिषेक •••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• द्रव्यों को ग्रहण करते हैं। तत्पश्चात् सभी आभियोगिक देव एकत्रित होकर जंबूद्वीप के पूर्वदिशा के द्वार से निकलते हैं और उस उत्कृष्ट यावत् दिव्य गति से चलते हुए तिरछी दिशा में असंख्यात द्वीप समुद्रों के मध्य होते हुए विजया राजधानी में आते हैं। विजया राजधानी की प्रदक्षिणा करते हुए अभिषेक सभा में विजयदेव के पास आते हैं और हाथ जोड़ कर मस्तक पर अंजलि लगा कर जयविजय शब्दों से उसे बधाते हैं। वे महार्थ. महाघ और महार्ह विपल अभिषेक सामग्री को उपस्थित करते हैं।
तए णं तं विजयदेवं चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ चत्तारि अग्गमहिसीओ सपरिवाराओ तिण्णि परिसाओ सत्त अणिया सत्त अणियाहिवई सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ अण्णे य बहवे विजयरायहाणिवत्थव्वगा वाणमंतरा देवा य देवीओ य तेहिं साभाविएहिं उत्तरवेउव्विएहि य वरकमलपइट्ठाणेहिं सुरभिवरवारिपंडिपुण्णेहिं चंदणकयचच्चाएहिं आविद्धकंठेगुणेहिं पउमुप्पलपिहाणेहिं करयलसुकुमालकोमलपरिग्गएहिं अट्ठसहस्साणं सोवणियाणं कलसाणं रुप्पमयाणं जाव अट्ठसहस्साणं भोमेज्जाणं कलसाणं सव्वोदएहिं सव्वमट्टियाहिं सव्वतुवरेहिं सव्वपुप्फेहिं जाव सव्वोसहिसिद्धत्थएहिं सव्विड्डीए सव्वजुईए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वायरेणं सव्वविभूईए सव्वविभूसाए सव्वसंभमेणं सव्वोरोहेणं सव्वणाडएहिं सव्वपुप्फगंधमल्लालंकारविभूसाए सव्वदिव्वतुडियणिणाएणं महया इड्डीए महया जुईए महया बलेणं महया समुदएणं महया तुरियजमगसमगपडुप्पवाइयरवेणं संखपण्णवपडहभेरिझल्लरिखरमुहि-हुडुक्कमुरवमुयंगदुंदुहिणिग्घोससंणिणाइयरवेणं महया महया इंदाभिसेएणं अभिसिंचंति॥
- भावार्थ - उस विजयदेव का, चार हजार सामानिक देव, सपरिवार चार अग्रमहिषियां, तीन परिषदाओं के देव, सात अनीक, सात अनीकाधिपति, सोलह हजार आत्मरक्षक देव और विजया राजधानी के रहने वाले अन्य बहुत से देव देवियां उन स्वाभाविक और उत्तरवैक्रिय से निर्मित श्रेष्ठ कमल के आधार वाले, सुगंधित श्रेष्ठ जल से भरे हुए, चंदन से चर्चित, गलों में मौलि बंधे हुए, पद्म कमल के ढक्कन वाले सुंकुमार और मृदु करतलों में परिगृहित एक हजार आठ सोने के, एक हजार आठ चाँदी के यावत् एक हजार आठ मिट्टी के कलशों के सर्वजल से, सर्व मिट्टी से, सर्व ऋतु के श्रेष्ठ पुष्पों से यावत् सभी औषधियों और सरसों से सम्पूर्ण परिवार की ऋद्धि के साथ, सम्पूर्ण द्युति के साथ, सम्पूर्ण हस्ती आदि सेना के साथ, सम्पूर्ण आभियोग्य परिवार के साथ, समस्त आदर से, समस्त विभूति से, समस्त विभूषा से, समस्त उत्साह से, सर्वारोहण सर्व स्वर सामग्री से सर्व नाटकों से, समस्त पुष्प
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