Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र
भद्रासन कहे गये हैं । उस सिंहासन के पूर्व में, दक्षिण में, पश्चिम में और उत्तर में विजयदेव के सोलह हजार आत्मरक्षक देवों के सोलह हजार सिंहासन हैं। पूर्व में चार हजार, इसी तरह चारों दिशाओं में चारचार हजार यावत् उत्तर में चार हजार सिंहासन कहे गये हैं। शेष भौमों में प्रत्येक में भद्रासन कहे गये हैं । विवेचन - भद्रासन - आराम कुर्सी की तरह होते हैं, सिंहासन इनसे भी विशिष्ट होते हैं । इन्द्र के अभाव में उसका कार्य सम्भालने वाले क्रम से एक से पांच तक के पांच सामानिक देव निश्चित ही होते हैं । अग्रमहिषियों के चार मुख्य भद्रासन होते हैं। उनके परिवार के चार हजार छोटे-छोटे भद्रासन होते हैं। मूल पाठ में चार भद्रासन ही कहे हैं। परिवार सहित कहने पर चार हजार भी समझ लेना चाहिये। विजयस्स णं दारस्स उवरिमागारा सोलसविहेहिं रयणेहिं उवसोभिया, तंजहा रयणेहिं वयरेहिं वेरुलिएहिं जाव रिट्ठेहिं ॥ विजयस्स णं दारस्स उप्पिं बहवे अट्ठट्ठमंगलगा पण्णत्ता, तंजहा सोत्थियसिरिवच्छ जाव दप्पणा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा । विजयस्स णं दारस्स उप्पिं बहवे कण्हचामरज्झया जाव सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा । विजयस्स णं दारस्स उप्पिं बहवे छत्ताइच्छत्ता तहेव ॥ १३३ ॥
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कठिन शब्दार्थ - उवरिमागारा- ऊपरी आकार ।
भावार्थ - उस विजयद्वार का ऊपरी आकार सोलह प्रकार के रत्नों से उपशोभित हैं । यथा रत्न, वज्र यावत् रिष्ट रत्न । उस विजयद्वार पर बहुत से आठ आठ मंगल कहे गये हैं । यथा - स्वस्तिक, श्रीवत्स यावत् दर्पण। ये सर्वरत्नमय, स्वच्छ यावत् प्रतिरूप हैं। उस विजयद्वार के ऊपर बहुत से काले चामर के चिह्न से अंकित ध्वजाएं हैं यावत् वे ध्वजाएं सर्वरत्नमय स्वच्छ यावत् प्रतिरूप हैं। उस विजयद्वार के ऊपर बहुत से छत्रातिछत्र कहे गये हैं। इन सब का वर्णन पूर्वानुसार समझ लेना चाहिये । विवेचन- जिन सोलह प्रकार के रत्नों से विजयद्वार का ऊपरी आकार सुशोभित हैं, वे इस प्रकार हैं १. रत्न - सामान्य कर्केतनादि २. वज्र ३. वैडूर्य ४. लोहिताक्ष ५. मसारगल्ल ६. हंसगर्भ ७. पुलक ८. सौगंधिक ९. ज्योतिरस १० अंक ११. अंजन १२. रजत १३. जातरूप १४. अंजनपुलक १५. स्फटिक और १६. रिष्ट ।
विजय द्वार, विजय द्वार क्यों कहलाता है ?
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सेकेणणं भंते! एवं वुच्चइ-विजए दारे विजए दारे ?
म! विदारे विजए णामं देवे महिड्डिए महज्जुईए जाव महाणुभावे पलिओवमट्ठिईए परिवसइ, से णं तत्थ चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं चउण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं तिहं परिसाणं सत्तण्हं अणियाणं सत्तण्हं अणियाहिवईणं सोलसण्हं
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