Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सत्र
के अग्रभाग को पकड़ रखा है। ये अपने तिरछे कटाक्षों से दर्शकों के मन को मानों चुरा ही हैं। तिरछे अवलोकन से ऐसा लग रहा है मानो ये एक दूसरे के सौभाग्य को सहन न करती हुई परस्पर खिन्न कर रही हों। ये पुतलियां पृथ्वीकाय की परिणाम रूप और शाश्वत भाव को प्राप्त है। इनका मुख चन्द्रमा जैसा है। ये चन्द्रमा के समान शोभायमान है। आधे चन्द्रमा की तरह उनका ललाट है, चन्द्रमा से भी अधिक उनका दर्शन सौम्य है उल्का के समान ये चमकीली हैं। इनका प्रकाश बिजली की प्रगाढ़ किरणों और अनावृत्त सूर्य के तेज से भी अधिक है उनकी आकृति श्रृंगार प्रधान और वेशभूषा बहुत ही सुहावनी है ये प्रसन्नता पैदा करने वाली, दर्शनीय, अभिरूपा और प्रतिरूपा-बहुत ही सुदंर है। ये अपने तेज से अतीव अतीव सुशोभित हो रही है।
विजयद्वार के दोनों ओर दो नैषेधिकाओं में दो जालकटक-जालियों वाले रम्य स्थान कहे गये हैं। ये सर्वरत्नमय, स्वच्छ यावत् प्रतिरूप हैं।
विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ णिसीहियाए दो दो घंटापरिवाडीओ पण्णत्ताओ, तासि णं घंटाणं अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तंजहा - जंबूणयमईओ घंटाओ वइरामईओ लालाओ णाणामणिमया घंटापासगा तवणिज्जमईओ संकलाओ रययामईओ रज्जूओ॥
ताओ णं घंटाओ ओहस्सराओ मेहस्सराओ हंसस्सराओ कोंचस्सराओ णंदिस्सराओ णंदिघोसाओ सीहस्सराओ सीहघोसाओ मंजुस्सराओ मंजुघोसाओ सुस्सराओ सुस्सरणिग्घोसाओ ते पएसे ओरालेणं मणुण्णेणं कण्णमणणिव्वुइकरेणं सद्देणं जाव चिटुंति॥
विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ णिसीहियाए दो दो वणमालापरिवाडीओ पण्णत्ताओ, ताओ णं वणमालाओ णाणादुमलयाकिसलयपल्लवसमाउलाओ छप्पयपरिभुज्जमाणकमलसोभंतसस्सिरीयाओ पासाइयाओ० ते पएसे उरालेणं जाव गंधेणं आपूरेमाणीओ जाव चिटुंति॥१२९॥
कठिन शब्दार्थ - घंटापरिवाडीओ - घंटाओं की पंक्तियां, सुस्सरणिग्घोसाओ - स्वर और निर्घोष सुहावना, वणमालापरिवाडीओ - वनमालाओं की पंक्तियां, णाणादुमलयाकिसलयपल्लवसमाउलाओनानाद्रुमलता किसलय पल्लव समाकुला:-अनेक वृक्षों, लताओं किसलय रूप पल्लवों-कोमल पत्तों से युक्त, छप्पयपरिभुज्जमाणकमल सोभंतसस्सिरीयाओ - षट्पदपरिभुज्यमान कमल शोभमान सश्रीकाभ्रमरों से भुज्यमान कमलों से सुशोभित और अतीव शोभा से युक्त
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