Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
तृतीय प्रतिपत्ति - जंबूद्वीप के द्वारों का वर्णन
५९
संखंककुंददगरयअमयमहियफेणपुंजसण्णिगासाओ सुहुमरयय-दीहवालाओ सव्वरयणामयाओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ॥ तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो तिल्लसमुग्गा कोट्ठसमुग्गा पत्तसमुग्गा चोयसमुग्गा तयरसमुग्गा एलासमुग्गा हरियालसमुग्गा हिंगुलुयसमुग्गा मणोसिलासमुग्गा अंजणसमुग्गा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा॥१३१॥
कठिन शब्दार्थ - हयकंठगा - हयकंठक-घोड़े के कंठ के प्रमाण जितने (रत्न विशेष), पुप्फचंगेरिओ - फूलों की चंगेरियां-छाबडियाँ, रुप्पछदाछत्ता - चांदी के आच्छादन वाले छत्र, तिलसमुग्गा - तैल समुद्गक-आधार विशेष जिसमें तैल रखा जाता है।
भावार्थ - उन तोरणों के आगे दो दो हयकंठक-रत्न विशेष यावत् दो-दो वृषभकंठक कहे गये हैं। वे सर्वरत्नमय, स्वच्छ यावत् प्रतिरूप हैं। उन हयकंठकों यावत् वृषभकंठकों में दो-दो फूलों की चंगेरियां कही गई हैं। इसी तरह मालाओं, गंध, चूर्ण वस्त्र एवं आभरणों की दो दो चंगेरियां कही गई हैं। इसी तरह सरसों और लोमहस्तक-मयूरपिच्छ की भी दो-दो चंगेरियां हैं। ये सर्वरत्नमय, स्वच्छ यावत् प्रतिरूप हैं।
उन तोरणों के आगे दो दो पुष्पपटल यावत् दो-दो लोमहस्तपटल कहे गये हैं जो सर्व रत्नमय यावत् प्रतिरूप हैं। उन तोरणों के आगे दो-दो सिंहासन हैं उन सिंहासनों का वर्णन पूर्वानुसार समझना चाहिए यावत् वे प्रसन्नता पैदा करने वाले, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप हैं। ..उन तोरणों के आगे चांदी के आच्छादन वाले छत्र कहे गये हैं। उन छत्रों के दण्ड वैडूर्यमणि के हैं, चमकीले और निर्मल हैं, उनकी कर्णिका-जहां शलाकाएं तार में पिरोई रहती है-स्वर्ण की है, उनकी संधियां, वज्ररत्न से पूरित है, वे छत्र मोतियों की मालाओं से युक्त हैं। एक हजार आठ शलाकाओं से युक्त हैं जो श्रेष्ठ सोने की बनी हुई है। कपड़े से छने हुए चंदन की गंध के समान सुगंधित और सर्व ऋतुओं में सुगंधित रहने वाली उनकी शीतल छाया है। उन छत्रों पर नाना प्रकार के मंगल चित्रित हैं और वें चन्द्रमा के समान गोल हैं।
उन तोरणों के आगे दो-दो चामर कहे गये हैं। वे चामर चन्द्रकांतमणि, वज्रमणि, वैडूर्यमणि आदि नाना मणि रत्नों से जटित दण्ड वाले हैं। वे चामर शंख, अंक रत्न, कुंद, जलकण, अमृत के मथित फेन पुंज के समान सफेद हैं। सूक्ष्म और रजत के लम्बे-लम्बे बाल वाले हैं। सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ यावत् प्रतिरूप हैं। .
उन तोरणों के आगे दो-दो तैल समुद्गक, कोष्ट समुद्गक, पत्र समुद्गक, चोय समुद्गक, तगरस समुद्गक, इलायची समुद्गक, हरिताल समुद्गक, हिंगलु समुद्गक, मनःशिला समुद्गक और अंजन समुद्गक हैं। ये सर्व रत्नमय हैं, स्वच्छ हैं यावत् प्रतिरूप हैं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org