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सिद्धान्तशारत्री के पास जब हस्तिनापुर गये, क्योंकि वे इस विषय के अधिकारी विद्वान है तथा समाज के इस समय सबसे वयोवृद्ध व ज्ञान-वृद्ध विद्वान हैं, उन्होंने पन्द्रह दिन शोधप्रबन्ध को अपने पास रखा तथा गम्भीरता से पढ़कर सुन्दर व उपयोगी भूमिका लिखकर दी है, जिसके लिए मैं उनका कृतज्ञ व हृदय से आभारी हूँ।
अन्त में मैं अपने पूज्य पिताजी श्री गम्भीर चन्द्र जी वैद्य व माताजी श्रीमती प्रकाशक्ती जैन का भी चिरऋणी हूँ कि जिनकी पावन प्रेरणा, उत्साह व हर प्रकार के सहयोग ने इस पुनीत कार्य में सम्बल प्रदान किया। यदि उनका धार्मिक व उसकी प्रेरणा नहीं होती, तो शायद ही इतना निश्चिन्त होकर निर्भीकता से यह कार्य कर पाता। क्योंकि कार्य करते समय तो किसी की प्रेरणा व सहयोग प्रायः लोगों को नहीं मिल पाता, परन्तु कार्य प्रकाशन के पश्चात् ही लोग सहयोग की भावनाएं प्रगट करते हैं, और कार्य की प्रशंसा भी करते हैं। यदि कार्य करते समय सहयोग मिले तो शायद वह द्विगुणित हो। परन्तु समस्या तो यह है कि पता कैसे चले कि वह कार्य कैसा करेगा ? अथवा कौन कर रहा है ? और किसको सहयोग की अपेक्षा है। जमीन के अन्दर पड़े बीज के सम्बन्ध में यह कैसे पता चले कि वह कहाँ है उसकी गुणवत्ता कैसी है ? अतः उसके अंकुरित होने पर वातावरण के तीखे अंकुश प्रायः उसका अन्त कर दिया करते हैं, यदि कदाचित् पता चल भी जावे कि वह यहाँ है, तो सहयोग के उन्मुक्त खाद-पानी उसे सडा कर स्वरूप हीन कर देते हैं। मर्यादित संरक्षण ही श्रेयस्कर है। अतः उसे खुद अपने भरोसे निरपेक्ष भाव से बड़ा होना होगा, फल देना होगा, तो कोई फल का लोभी उसके संरक्षण के प्रति सजग होगा, वह लोगों को सहयोग देने के लिए बाध्य कर सकेगा। यह तो संसार के जीवों की व्यवहार शैली है। मेरा शोध कार्य भी इसी प्रक्रिया से गुजरा है, और उसके फल ने लोगों को प्रकाशन के लिए बाध्य किया है, जिसकी सिद्धि अत्यल्प काल में प्रकाशित प्रस्तुत कृति है।
इस श्रमण स्वरुप के अध्ययन ने मेरा जीवन परिवर्तित किया है, मेरे जीवन में सदाचार का प्रवर्तन हुआ है, तथा श्रमणों के प्रति पहले से भी कहीं ज्यादा सम्मान व पूज्यनीयता का भाव जाग्रत हुआ है। अतः पाठकगण भी इस पुस्तक को पढ़कर साधु स्वस्प के प्रति सच्ची श्रद्धा दृढ़तम करेगें, जो मेरे परिश्रम का वास्तविक उद्देश्य है। साथ ही इस कृति में सम्भावित अज्ञात त्रुटियों की ओर ध्यानाकर्षण प्रस्ताव भी मेरे समक्ष रखेंगे- इस भावना के साथ।
आपका डॉ. योगेश चन्द्र जैन