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आशीर्वचन
ANS सिद्धान्त
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सिद्धान्तचक्रपतीं एलाचार्य विद्यानन्द मुनि
Camp Koper gaon
Dee /१, 1984 ‘भास्ति एषां यशः कामे जरामरगजं भप। - धनिरागी भइपरिणामी पं.सी फूल चन्द सिदान्त शास्त्रीजी से हमारी सब से पहली भेट दहली में हुई। उसके चार पोरनपुर बम्बई में हमारे १६८४ वर्षामोग में दो महीने तक भी समपसार, इत्यादि का स्वाध्याय करने का अवसर मिना। उनकी समझनि की शैली अति सरल तथा शास्त्रोक्त है। वह जैन साहित्य,सांस्कृति और लिदान्त के मर्मज, सरल स्वभावी अत्यन्त बिनम्र ति. इस युग के पतिभा संपल निदान है। उनले विचार तथा लेरव त्यादि से स्सा भास होता है कि शुरु से ही उनका ज्ञान परिपक्व तया सह। विद्वत समाज सदा उनका कृतज्ञ रहेगा। हमारा शुभाशीबीरवि पंडितजी स्वस्थ्य रहें. दीर्याय में ताकि जनधर्म की और भी सेवा कर सकें।
शुभाशीवार
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