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व्रत के भंग
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एक एक व्रत के भंग कहे. द्विकादि व्रत संयोग के प्रकार से तो अनेक प्रकार होते हैं ।
उनको लाने के लिए उपाय की गाथा इस प्रकार है
एगवए छब्भंगा'- नवे ' गवीसे गुवन्न सीयल" । एगहिय छाइ गुणिया - छाइजुया वयसमा भंगा ॥ १ ॥
एक व्रत में छः, नव, इकवीस, उनपचास और एकसौ सैंतालीस भंग होते हैं. उनको एकाधिक छः आदि से याने ७-१०-२२५० व १४८ से गुणा करके उनमें छः आदि संख्या जोड़ना. इस प्रकार जितने व्रत हैं उतनी वार करने से भंग तैयार होते हैं ।
इस गाथा की अक्षर योजना इस प्रकार है
एक व्रत में याने प्राणातिपातादिक में के किसी भी एक व्रत मैं ६, ९, २१, ४९ व १४७ भंग होते हैं । अब उनमें अन्य व्रतादि संयोग करने से वे ही छः आदि भंग एकाधिक छः आदि से याने ७, १०, २२, ५०, १४८ से गुणा करना, पश्चात् उनमें छ: आदि याने ६, ९, २१, ४९ व १४७ जोड़ना. उससे क्या होता है सो कहते हैं- ऐसा करने से निश्चित किये हुए द्वितीयादि व्रत की संख्या जितनी बार गुणा करने से भंग हो जाते हैं ।
इसका तात्पर्य यह है - यहां प्रथम व्रत की छः भंगी में छः भंग हैं तो वे ही दो व्रत के संयोग में ७ से गुणा करते ४२ होते हैं उनमें छः जोड़ते ४८ होते हैं ।
उसी ४८ की संख्या को तीन व्रत के संयोग में सोत से गुणा करके छः जोड़ने से ३४२ होते हैं. ऐसे ही चार व्रत आदि के संयोग में भी ७ से गुणा करके छः जोड़ने के क्रम से चलते जाना,