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अपि च
प्रथम अध्याय
व्यालोलनेत्रमधुपाः सुमनोभिरामाः,
पाणिप्रवाल रुचिराः सरसाः कुलीनाः । आनृण्यकारणसुपुत्रफलाः पुरन्ध्रयो,
धन्यं व्रतत्य इव शाखिनमास्वजन्ते ॥३३॥
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सुमनसः सुचित्ताः पुष्पाणि च । सरसा:- सानुरागाः सार्द्राश्च । कुलीनाः - कुलजाः भूमिश्लिष्टाश्च । आनृण्यम् - अपुत्रः पुमान् पितॄणामृणभाजनमित्यत्रोपजीव्यम् । शाखिनं - वृक्षं बहुगोत्र विस्तारं च ॥३३॥ अथ बालात्मजलीलावलोकनसुखं कृतपुण्यस्य प्रकाश्यते
क्रीत्वा वक्षोरजोभिः कृतरभसमुरश्चन्दनं चाटुकारैः,
किंचित् संतर्प्य कर्णौ द्रुतचरणरणद्युर्घुरं दूरमित्वा । क्रीडत् डिम्भैः प्रसादप्रतिघघनरसं सस्मयस्मेरकान्ता
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आयुके अनुसार अपनी पत्नीके भी दो रूप होते हैं-युवती और पुरन्ध्री । जब तक प्रारम्भिक युवावस्था रहती है तबतक युवती और बाल-बच्चोंसे कुटुम्बके पूर्ण हो जाने पर जाती है । इनमें से युवती सम्बन्धी सुख-सम्पदाका कथन करके अब पुरन्ध्रीविषयक सुख बतलाते हैं
दृक्संबाधं जिहीते नयनसरसिजान्यौरसः पुण्यभाजाम् ||३४||
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क्रीत्वा -- पणयित्वा स्वीकृत्य इत्यर्थः । इत्वा - गत्वा । प्रतिघः --- कोपः । सस्मयाः सगर्वाः । संकट कान्तादृशोऽप्यौरसोऽपि युगपन्नयनयोः सञ्चरन्तीत्यर्थः ॥ ३४ ॥
अथ पुत्रस्य कौमारयौवनोचितां गुणसंपदं पुण्यवतः शंसति
जैसे चंचल नेत्रोंके समान भौंरोंसे युक्त, पुष्पोंसे शोभित, हथेलीके तुल्य नवीन कोमल पत्तोंसे मनोहर, सरस और फलभारसे पृथ्वी में झुकी हुई लताएँ वृक्षका आलिंगन करती हैं उसी प्रकार भौंरे जैसे चंचल नेत्रवाली, प्रसन्न मन, कोमल पल्लव जैसे करोंसे सुन्दर, अनुराग से पूर्ण, कुलीन और अपने पतिको पितृऋणसे मुक्त करने में कारण सुपुत्ररूपी फलोंसे पूर्ण पुरन्धियाँ पुण्यशाली पतिका आलिंगन करती हैं ||३३||
अब बतलाते हैं कि पुण्यवान् को अपने बालपुत्रकी लीलाको देखनेका सुख प्राप्त
होता है
खेलते हुए अपनी छाती में लगी हुई धूलके साथ वेगसे आकर पितासे लिपट जाने से पिताकी छाती पर लगा चन्दन बालककी छाती पर लग जाता है और बालककी छाती पर लगी धूल पिताकी छातीसे लग जाती है । कभी अपने प्रियवचनोंसे पिताके कानोंको तृप्त करता है, कभी जल्दी-जल्दी चलने से पैरों में बँधे हुए घुघुरूके झुनझुन शब्द के साथ दूर तक जाता है और बालकोंके साथ खेलते हुए क्षणमें रुष्ट और क्षण में तुष्ट होता है । उसकी इन क्रीडाओंसे आकृष्ट बालककी माता गर्वसे भरकर मुसकराती हुई उसे निहारती है तो पुण्यशाली पुरुष के नयन कमल अपने पुत्रकी क्रीडाओंको देखने में बाधाका अनुभव करते हैं क्योंकि प्रिय पुत्र और प्रिय पत्नी दोनों ही उसे अपनी ओर आकृष्ट करते हैं । यह पुण्यका विलास है ||३४||
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पुण्यशालीके पुत्रकी कुमार अवस्था और यौवन अवस्थाके योग्य गुण - सम्पदाकी प्रशंसा करते हैं
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