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उत्पादादयो यथोद्देशं वक्ष्यन्ते ॥ १९ ॥ अथ पञ्चधा धात्रीदोषमाह -
पंचम अध्याय
मार्जन- क्रीडन- स्तन्यपान स्वापन- मण्डनम् ।
बाले प्रयोक्तुर्यत्प्रीतो दत्ते दोषः स धात्रिका ॥ २०॥
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प्रयोक्तुः - स्वयं कर्तुः कारयितुरुपदेष्टुर्वा यत्यादेः । प्रीतः - अनुरक्तो गृहस्थः । धात्रिका — धात्री - संज्ञः । पञ्चधा हि धात्री मार्जन मण्डन खेलापन-क्षी राम्बाधात्रीभेदात् । मार्जनादिभिश्च कर्मभिबले प्रयुक्तैभजनादिकमुत्पाद्य भजतो मार्जनधात्र्यादिसंज्ञो दोषः पञ्चधा स्यात् स्वाध्यायविनाशमार्गदूषणादिदोषदर्शनात् । उक्तं च
'स्नानभूषापयः क्रीडा मातृधात्रीप्रभेदतः । पञ्चधा धात्रिकाकार्यादुत्पादो धात्रिकालः ॥' [ अथ दूतनिमित्तदोषी व्याकरोति
विशेषार्थ - उद्गम दोष तो गृहस्थोंके द्वारा होते हैं और उत्पादन दोष साधुके द्वारा होते हैं | श्वेताम्बर परम्परामें भी ये १६ उत्पादन दोष कहे हैं ||१५||
पाँच प्रकारके धात्री दोषको कहते हैं
१. खेलास्वापनक्षी राम्बु भ. कु. च. ।
२. 'धाई दुइ निमित्ते आजीव वणीमगे तिगिच्छा य । कोहे माणे माया लोभे य हवंति दस ए ए ॥ पुवि पच्छा संथव विज्जा मंते य चुन्न जोगे य । उपायणाइ दोसा सोलसमे मूलकम्मे य' ॥
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बालकको नहलाना, खिलाना, दूध पिलाना, सुलाना और और आभूषित करना इन पाँच कर्मोंके करनेवाले साधुपर प्रसन्न होकर गृहस्थ उसे जो दान देता है वह धात्रिका दोषसे दूषित है ||२०||
विशेषार्थ - जो बालकका पालन-पोषण करती है उसे धात्री या धाय कहते हैं । वह धात्री पाँच प्रकारकी होती है । स्नान करानेवाली मार्जन धात्री है। खिलानेवाली क्रीडन धात्री है | दूध पिलानेवाली दूध धात्री है । सुलानेवाली स्वापन धात्री है । और भूषण आदि धारण करानेवाली मण्डन धाय है । जो साधु गृहस्थसे कहता है कि बालकको अमुक प्रकार से नहलाना चाहिए आदि । और ग्रहस्थ उसके इस उपदेशसे प्रसन्न होकर उसे दान देता है और साधु लेता है तो वह साधु धात्री नामक दोषका भागी होता है । इसी प्रकार पाँचों दोषों को समझना । पिण्डनिर्युक्तिमें पाँचों धात्री दोषोंके कृत और कारितकी अपेक्षा दो-दो भेद किये हैं और प्रत्येकको उदाहरण देकर विस्तारसे समझाया है । यथा - भिक्षा के लिए प्रविष्ट साधु बालकको रोता देखकर पूछता है यह क्यों रोता है। भूखा है तो दूध पिलाओ पीछे मुझे भिक्षा दो । या यह पूछने पर कि बालक क्यों रोता है ? गृहिणी कहती है, हमारी धाय दूसरे के यहाँ चली गयी है । तो साधु पूछता है कि तुम्हारी धाय कैसी है वृद्धा या जवान, गोरी या काली, मोटी या पतली । मैं उसे खोजकर लाऊँगा । इस तरह से प्राप्त भोजन धात्री दोषसे दूषित होता है ||२०||
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आगे दूत और निमित्त दोषको कहते हैं
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पिण्डनि. ४०८-९ गा.
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