Book Title: Dharmamrut Anagar
Author(s): Ashadhar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 722
________________ नवम अध्याय योगप्रतिक्रमविधिः प्रागुक्तो व्यावहारिकः। कालक्रमनियामोऽत्र न स्वाध्यायाविवद्यतः॥४४॥ स्वाध्यायादिवत्-स्वाध्याये देववन्दनायां भक्तप्रत्याख्याने च ॥४४॥ अथोत्तरप्रबन्धेन नैमित्तिकक्रियां व्याकर्तुकामः प्रथमं तावच्चतुर्दशीक्रियाप्रयोगविधि मतद्वयेनाह त्रिसमयवन्दने भक्तिद्वयमध्ये श्रुतनुति चतुर्दश्याम् । प्राहुस्तद्भक्तित्रयमुखान्तयोः केऽपि सिद्धशान्तिनुती ॥४५॥ त्रिसमयेत्यादि-एतेन नित्यत्रिकालदेववन्दनायुक्तव चतुर्दशी क्रिया कर्तव्येति लक्षयति । प्राहुःप्राकृतक्रियाकाण्डचारित्रमतानुसारिणः सूरयः प्रणिगदन्ति । यथाह क्रियाकाण्डे 'जिनदेववन्दणाए चेदियभत्ती य पंचगुरुभत्ती। चउदसियं तं मज्झे सूदभत्ती होइ कायव्वा ॥' चारित्रसारेऽप्याह-'देवतास्तवनक्रियायां चैत्यभक्ति पञ्चगुरुभक्ति च कुर्यात् । चतुर्दशीदिने तयोर्मध्ये श्रुतभक्तिभवति ।' इति ।। केऽपि-संस्कृतक्रियाकाण्डमतानुसारिणः । तत्पाठो यथा 'सिद्धे चैत्ये श्रुते भक्तिस्तथा पञ्चगुरुश्रुतिः । शान्तिभक्तिस्तथा कार्या चतुर्दश्यामिति क्रिया ॥ [ ] ॥४५॥ पहले जो रात्रियोग और प्रतिक्रमणकी विधि कही है वह व्यवहार रूप है। क्योंकि स्वाध्याय आदिकी तरह योग और प्रतिक्रमण विधिमें कालक्रमका नियम नहीं है। अर्थात् जैसे स्वाध्याय, देववन्दना और भक्त प्रत्याख्यानमें कालक्रमका नियम है कि अमुक समयमें ही होना चाहिए वैसा नियम रात्रियोग और प्रतिक्रमणमें नहीं है। समय टालकर भी किये जा सकते हैं ॥४४॥ इस प्रकार नित्य क्रियाके प्रयोगका विधान जानना । आगे नैमित्तिक क्रियाका वर्णन करते हुए प्रथम ही चतुर्दशीके दिन करने योग्य क्रिया की विधि कहते हैं प्राकृत कियाकाण्ड और चारित्रसार नामक ग्रन्थोंके मतानुसार प्रातःकाल, मध्याह्न और सायंकालके समय देववन्दनाके अवसरपर जो नित्य चैत्यभक्ति और पंचगुरु भक्ति की जाती है, चतुर्दशीके दिन उन दोनों भक्तियोंके मध्यमें श्रुतभक्ति भी करनी चाहिए । किन्तु संस्कृत क्रियाकाण्डके मतानुसार चतुर्दशीके दिन उन तीनों भक्तियोंके आदि और अन्तमें क्रमसे सिद्धभक्ति और शान्तिभक्ति करनी चाहिए ॥४५॥ विशेषार्थ-चतुर्दशीके दिन किये जानेवाले नैमित्तिक अनुष्ठानमें मतभेद है। प्राकृत क्रियाकाण्डमें कहा है-'जिनदेवकी वन्दनामें प्रतिदिन चैत्यभक्ति और पंचगुरुभक्ति की जाती है। किन्तु चतुर्दशीके दिन इन दोनों भक्तियोंके मध्य में श्रुतभक्ति करनी चाहिए।' इसी तरह चारित्रसारमें कहा है-'देववन्दनामें चैत्यभक्ति और पंचगुरुभक्ति करनी चाहिए किन्तु चतुर्दशीके दिन उन दोनों भक्तियोंके मध्यमें श्रुतभक्ति भी करनी चाहिए।' इस तरह प्राकृत क्रियाकाण्ड और चारित्रसारका मत एक है। किन्तु संस्कृत क्रियाकाण्डमें कहा है-'चतुर्दशीमें क्रमसे सिद्धभक्ति, चैत्यभक्ति, श्रुतभक्ति, पंचगुरुभक्ति और शान्तिभक्ति करनी चाहिए' ॥४५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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