Book Title: Dharmamrut Anagar
Author(s): Ashadhar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 751
________________ ३ ६९४ धर्मामृत (अनगार ) न कोमलाय बालाय दीयते व्रतमर्चितम् । न हि योग्ये महोक्षस्य भारे वत्सो नियोज्यते ॥' [ न च मुमुक्षूणां दीक्षादानादिकं विरुध्यते । सरागचरितानां तद्विधानात् । यदाह गोत्र विशुद्ध है, चारित्र उत्तम है, सुन्दर है और बुद्धि सन्मार्ग की ओर है ऐसा पुरुष ही दीक्षा ग्रहण के योग्य है । ] पिताकी अन्वय शुद्धिको कुल और माताकी अन्वय शुद्धिको जाति कहते हैं । अर्थात् जिसका मातृकुल और पितृकुल शुद्ध है वही ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य दीक्षाका पात्र माना गया है । केवल जन्मसे ब्राह्मण आदि होनेसे ही दीक्षाका पात्र नहीं होता । कहा है-जाति, गोत्र आदि कर्म शुक्लध्यान के कारण हैं। जिनमें वे होते हैं वे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य कहे जाते हैं। शेष सब शूद्र हैं' कुल और जातिके साथ सुदेशमें जन्मको भी जिनदीक्षा के योग्य बतलाया है । जैन सिद्धान्त भरतक्षेत्रको दो भागों में विभक्त किया है - कर्मभूमि और अकर्मभूमि | जिनमुद्राका धारण कर्मभूमि में ही होता है अकर्मभूमि में नहीं; क्योंकि वहाँ धर्म-कर्म की प्रवृत्तिका अभाव है । किन्तु अकर्मभूमिज मनुष्यके संयम माना है । यह कैसे सम्भव है ? इस चर्चाको जयधवलासे दिया जाता है-- उसमें कहा है - 'कम्मभूमियस्स' ऐसा कहने से पन्द्रह कर्मभूमियोंके मध्यके खण्डों में उत्पन्न हुए मनुष्यका ग्रहण करना चाहिए। भरत, ऐरावत और विदेह क्षेत्रों में विनीत नामवाले मध्य खण्डको छोड़कर शेष पाँच खण्डों में रहनेवाला मनुष्य यहाँ अकर्मभूमिया कहा गया है क्योंकि इन खण्डोंमें धर्म-कर्म की प्रवृत्ति असम्भव होनेसे अकर्मभूमिपना बनता है । शंका- यदि ऐसा है तो वहाँ संयमका ग्रहण कैसे सम्भव है ? समाधान - ऐसी शंका करना ठीक नहीं है । क्योंकि दिग्विजय करनेमें प्रवृत्त चक्रवर्तीकी सेना के साथ जो म्लेच्छ राजा मध्यम खण्डमें आ जाते हैं और वहाँ चक्रवर्ती आदिके साथ जिनका वैवाहिक सम्बन्ध हो जाता है उनके संयम ग्रहण करनेमें कोई विरोध नहीं है । अथवा उनकी जो कन्याएँ चक्रवर्ती आदिके साथ विवाही जाती हैं उनके गर्भ से उत्पन्न बालक यहाँ मातृपक्षकी अपेक्षा अकर्मभूमियाँ कहे गये हैं । इसलिए कोई विरोध नहीं है क्योंकि इस प्रकारके मनुष्योंके दीक्षा योग्य होनेमें कोई निषेध नहीं है । इस तरह म्लेच्छ कन्याओंसे उत्पन्न कर्मभूमिज पुरुषों को भी दीक्षा के योग्य माना गया है । किन्तु उनका कुल आदि शुद्ध होना चाहिए। कहा भी है- उत्तम देश, कुल और १. जाति - गोत्रादि-कर्माणि शुक्लध्यानस्य हेतवः । येषु ते स्युस्त्रयो वर्णाः शेषाः शूद्राः प्रकीर्तिताः ॥ - महापु. ७४१४९३ २. 'कम्मभूमिस्से ति वृत्ते पण्णरस कम्मभूमीसु मज्झिम- खंड समुपण्णस्स गहणं कायव्वं । को अकम्मभूमिओ णाम ? भरहेरावयविदेहेसु विणीद-सण्णिद- मज्झिमखंड मोनूण सेसपंचखंडनिवासी मणुओ एत्थाकम्मभूमिओत्ति विवक्खिओ, तेसु धम्मकम्म पवृत्तीए असंभवेण तब्भावोववत्तदो । जइ एवं कुदो तत्थ संजम - गण संभवोत्तिणासंकणिज्जं, दिसाविजयपयट्ट-चक्कवट्टि खंधावारेण सह मज्झिम खंडमागयाणं मिलेच्छरायाणं तत्थ चक्कवआिदीहि सहजादवेवाहियसंबंधाणं संजमपडिवत्तीए विरोहाभावादो । अथवा तत्कन्यकानां चक्रवर्त्यादिपरिणीतानां गर्भेषूत्पन्न मातृपक्षापेक्षया स्वयमकर्मभूमि इतीह विवक्षिताः । ततो न किंचिद् विप्रतिषिद्धं तथाजातीयकानां दीक्षार्हत्व प्रतिषेधाभावात् ।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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