Book Title: Dharmamrut Anagar
Author(s): Ashadhar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 760
________________ नवम अध्याय ७०३ सं पंडितं ग्रन्थप्रमाणमष्टचत्वारिंशच्छतानि । अंकतः ४८००। सम्यग्दृष्टि धर्म और शुक्लध्यानके द्वारा शुभाशुभ कर्मोंको नष्ट करके दो-तीन या सात-आठ भवोंमें मोक्ष स्थानको गमन करते हैं ॥१०॥ इस प्रकार आशाधर रचित धर्मामृतके अन्तर्गत अनगारधर्मकी भव्यकुमुदचन्द्रिका टीका तथा ज्ञानदीपिका पंजिकाको अनुसारिणी हिन्दी टीकामें नित्यनैमित्तिक क्रिया विधान नामक नवम अध्याय समाप्त हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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