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नवम अध्याय
६६३ प्रावत्-पूर्वाह्न यथा ॥३९॥ अथ स्वाध्यायनिष्ठापनानन्तरकरणीयं देवसिकप्रतिक्रमणादिविधिमाह
नाडीद्वयावशेषेऽह्नितं निष्ठाप्य प्रतिक्रमम् ।
कृत्वाह्निकं गृहीत्वा च योगं वन्द्यो यतैर्गणी ॥४०॥ स्पष्टम् ॥४०॥ अथाचार्यवन्दनानन्तरविधेयं देववन्दनादिविधिमाह
स्तुत्वा देवमथारभ्य प्रदोषे सद्विनाडिके ।
मुञ्चेन्निशीथे स्वाध्यायं प्रागेव घटिकाद्वयात् ॥४१॥ स्पष्टम् ॥४१॥ अथ रात्री निष्ठापितस्वाध्यायस्य निद्राजयोपायमाह
ज्ञानाद्याराधनानन्दसान्द्रः संसारभीरुकः ।
शोचमानोऽजितं चैनो जयेन्निद्रां जिताशनः ॥४२॥ . शोचमानः-ताच्छील्येन शोचन् । जिताशनः-आहारेणाग्लपितः । दन्त्यसकारको वा पाठः । तत्र पर्यङ्काद्यासनेनासंजातखेद इत्यर्थः । उक्तं च
'ज्ञानाद्याराधने प्रीतिं भयं संसारदुःखतः। पापे पूवाजिते शोकं निद्रां जेतुं सदा कुरु ॥' [ ] ॥४२।।
चाहिए। उसके बाद दो घड़ी मध्याह्न बीतनेपर पूर्वाह्न की तरह विधिपूर्वक स्वाध्याय करना चाहिए ॥३९॥
मध्याह्नकालकी स्वध्यायके अनन्तर दिन सम्बन्धी प्रतिक्रमण आदिकी विधि बताते हैं
- संयमियोंको जब दिनमें दो घड़ी काल बाकी रहे तब स्वाध्यायको समाप्त करके दिन सम्बन्धी दोषोंकी विशुद्धिके लिए प्रतिक्रमण करना चाहिए। उसके बाद रात्रियोग ग्रहण करके आचार्यकी वन्दना करनी चाहिए ॥४०॥
आगे आचार्यवन्दनाके अनन्तर करने योग्य देववन्दना आदिकी विधि बताते हैं
आचार्यवन्दनाके अनन्तर देववन्दना करके रात्रिका प्रारभ हुए दो घड़ी बीतनेपर स्वाध्यायका आरम्भ करे और आधी रातमें दो घड़ी शेष रहनेके पूर्व ही स्वाध्यायको समाप्त कर दे॥४२॥
रात्रि में स्वाध्याय समाप्त करके निद्राको जीतनेके उपाय बताते हैं
ज्ञान आदिकी आराधनासे उत्पन्न हुए आनन्द रससे परिपूर्ण, संसारसे भीरु, पूर्व संचित पापका शोक करनेवाला और अशन अर्थात् भोजनको जीतनेवाला या आसनको जीतनेवाला ही निद्राको जीत सकता है ।।४२॥
__विशेषार्थ-निद्राको जीतनेके चार उपाय हैं-ज्ञानाराधना, दर्शनाराधना, चारित्राराधना और तप आराधनाके करनेसे जो प्रगाढ आनन्द होता है उस आनन्दमें निमग्न साधु निद्राको जीत सकता है। संसारसे भय भी निद्राको जीतने में सहायक होता है। पूर्वसंचित पापकर्मका शोक करनेसे भी निद्राको भगाया जा सकता है। चौथा कारण है
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