Book Title: Dharmamrut Anagar
Author(s): Ashadhar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 728
________________ नवम अध्याय लघ्वी सूरिनुतिश्चेति पाक्षिकादो प्रतिक्रमे । ऊनाधिका विशुद्धयर्थं सर्वत्र प्रियभक्तिका ॥ वृत्तालोचनया साधं गुर्व्यालोचनया क्रमात् । सूरिद्वयस्तुति मुक्त्वा शेषाः प्रतिक्रमाः क्रमात् ॥' गणधर वलयको पढ़कर प्रतिक्रमण दण्डकोंको पढ़ना चाहिए । शिष्य और सधर्माको तबतक कायोत्सर्ग में रहकर प्रतिक्रमण दण्डकोंको सुनना चाहिए । इसके पश्चात् साधुओंको 'थोस्सामि' इत्यादि दण्डकको पढ़कर आचार्य के साथ • ' वदसं मिर्दिदियरोधो' इत्यादि पढ़कर वीरस्तुति करनी चाहिए । अर्थात् – 'सर्वातिचारविशुद्धयर्थं पाक्षिक प्रतिक्रमणक्रियायां पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकलकर्मक्षयार्थं भावपूजावन्दना - स्तवसमेतं निष्ठितकरणवीरभक्तिकायोत्सर्गं करोम्यहम् ।' यह पढ़कर ' णमो अरहंताणं' इत्यादि दण्डकको पढ़कर कायोत्सर्ग में कहे हुए उच्छ्वासोंको करके फिर 'थोस्सामि' इत्यादि दण्डकको पढ़े। फिर 'चन्द्रप्रभं चन्द्रमरीचिगौरं' इत्यादि स्वयम्भूको पढ़कर 'यः सर्वाणि चराचराणि' इत्यादि वीरभक्तिको अंचलिकाके साथ पढ़कर 'वदसमिदिदियरोधो' इत्यादि पढ़ना चाहिए | इसके पश्चात् आचार्यसहित सब संयमियोंको - 'सर्वातिचारविशुद्धयर्थं शान्तिचतुर्विंशतितीर्थंकरभक्तिकायोत्सर्गं करोम्यहम्' यह कहकर 'णमो अरहंताणं' इत्यादि auseat पढ़कर कायोत्सर्ग करके 'थोरसामि' इत्यादि दण्डकको पढ़कर शान्तिनाथकी 'विधाय रक्षा' इत्यादि स्तुति तथा 'चउवीसं तित्थयरे' इत्यादि चौबीस तीर्थंकरोंकी स्तुति करके अंचलिका सहित 'वदसमिदिदियरोधो' इत्यादि पढ़ना चाहिए। उसके बाद 'सर्वातिचारविशुद्धयर्थं चारित्रालोचनाचार्यभक्तिकायोत्सर्गं करोम्यहम्' यह पढ़कर 'इच्छामि भन्ते चारित्ताचारो तेरहविहो परिहारविदो' इत्यादि दण्डकके द्वारा साध्य लघु चारित्रालोचनाके साथ बृहत् आचार्यभक्ति करनी चाहिए । इसके बाद 'वदसमिदिदियरोधो' इत्यादि पढ़कर 'सर्वातिचारविशुद्धयर्थं बृहदालोचनाचार्यभक्तिकायोत्सर्ग करोम्यहम्' यह पढ़कर फिर ' णमो अरहंताणं' इत्यादि दण्डको पढ़कर 'इच्छामि भन्ते पक्खियम्हि आलोचेऊ पण्णारसाणं दिवसाणं' इत्यादि बृहत् आलोचनासे सहित 'देसकुलजाइसुद्धा' इत्यादि मध्य बृहदाचार्य भक्ति करनी चाहिए । Jain Education International ६७१ इसके बाद आचार्यसहित साधुओं को 'वदसमिदिदियरोधो' इत्यादि पढ़कर 'सर्वातचारविशुद्धयर्थं क्षुल्लकालोचनाचार्यभक्तिकायोत्सर्गं करोम्यहम्' यह उच्चारण करके पूर्वदत् दण्डक आदि पढ़कर 'प्राज्ञः प्राप्तसमस्तशास्त्रहृदयः' से लेकर 'मोक्षमार्गोपदेशकाः' पर्यन्त लघु आचार्य भक्ति करनी चाहिए। इसके बाद सब अतीचारोंकी विशुद्धिके लिए सिद्धभक्ति, चारित्रभक्ति, प्रतिक्रमणभक्ति, निष्ठितकरण, वीरभक्ति, शान्तिभक्ति, चतुविंशतितीर्थंकरभक्ति, चारित्रभक्ति, आलोचना सहित आचार्यभक्ति, बृहद् आलोचना सहित आचार्यभक्ति, क्षुल्लक आलोचना सहित आचार्यभक्ति करके उनमें होनता, अधिकता आदि दोषोंकी विशुद्धिके लिए समाधिभक्तिपूर्वक कायोत्सर्ग करना चाहिए । और पूर्ववत् दण्डक आदि पढ़कर 'शास्त्राभ्यासो जिनपतिनुतिः' इत्यादि प्रार्थना करनी चाहिए । अन्य ग्रन्थों में भी ऐसा ही विधान है । यथा 'पाक्षिक आदि प्रतिक्रमणमें अरहन्त देव अथवा आचार्यके सम्मुख सिद्धभक्ति, चारित्रभक्ति और बृहद् आलोचनाके बाद लघुसिद्धभक्ति और लघुयोगिभक्ति की जाती For Private & Personal Use Only ३ www.jainelibrary.org

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