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धर्मामृत ( अनगार) अथावमौदर्यलक्षणं फलं चाहग्रासोऽश्रावि सहस्रतन्दुलमितो द्वात्रिंशदेतेऽशनं
पुंसो वैधसिकं स्त्रियो विचतुरास्तद्धानिरौचित्यतः । प्रासं यावदथैकसिक्थमवमोदयं तपस्तच्चरे
द्धर्मावश्यकयोगधातुसमतानिद्राजयाद्याप्तये ॥२२॥ अश्रावि-श्रावितः शिष्टस्तेभ्यः श्रुतो वा । वैश्रसिकं-स्वाभाविकम् । विचतुराः-विगताश्चत्वारो येषां ते, अष्टाविंशतिसा इत्यर्थः। औचित्यत:-एकोत्तरश्रेण्या चतुर्थादिभागत्यागाद्वा । उक्तं च
'द्वात्रिंशाः कवलाः पुंसः आहारस्तृप्तये भवेत् । अष्टाविंशतिरेवेष्टाः कवलाः किल योषितः ॥' 'तस्मादेकोत्तरश्रेण्या यावत्कवलमात्रकम् ।
ऊनोदरं तपो ह्येतद् भेदोऽपीदमिष्यते ॥' [ ___ अवमौदर्य-अतृप्तिभोजनम् । तपः-तपोहेतुत्वाद् यूनतापरिहाररूपत्वात् । योगः-आतपनादिः सुध्यानादिश्च । धातुसमता-वाताद्यवैषम्यम् । निद्राजयादि, आदिशब्देन इन्द्रियप्रद्वेषनिवृत्त्यादिः । उक्तं च
'धर्मावश्यकयोगेषु ज्ञानादावुपकारकृत् ।
दर्पहारीन्द्रियाणां च ज्ञेयमूनोदरं तपः ॥' [ ] ॥२२॥ करके मैं बाहुबलीके समान अवस्थाको कब प्राप्त करूँगा, ऐसी भावनावाला अनशन तपका पालक होता है ॥२१॥
विशेषार्थ-स्वामी जिनसेनने बाहुबलीकी चर्याके सम्बन्धमें कहा है-'गुरुकी आज्ञासे एकाकी विहार करते हुए बाहुबली एक वर्ष तक प्रतिमा योग धारण करके स्थिर हो गये। प्रशंसनीय व्रती अनशन तपधारी बाहुबली वनकी लताओंसे आच्छादित हो गये। बाँबीके छिद्रोंसे निकलनेवाले साँपों-से वे बड़े डरावने लगते थे' ॥२१॥
इस प्रकार अनशन तपका विस्तारसे कथन किया। अब अवमौदर्य तपका लक्षण और फल कहते हैं
शिष्ट पुरुषोंसे सुना है कि एक हजार चावलका एक पास होता है। पुरुषका स्वाभाविक भोजन ऐसे बत्तीस पास है और स्त्रीका स्वाभाविक भोजन उससे चार ग्रास कम अर्थात् अट्ठाईस पास है। उसमें-से यथायोग्य एक-दो-तीन आदि ग्रासोंको घटाते हुए एक ग्रास तक अथवा एक चावल तक ग्रहण करना अवमौदर्य तप है। यह तप उत्तम, क्षमा आदि रूप, धर्मकी, छह आवश्यकोंकी, आतापन आदि योगकी प्राप्ति के लिए, वायु आदिकी विषमताको दूर करनेके लिए, निद्राको जीतने आदिके लिए किया जाता है ॥२२॥
. विशेषार्थ-अवमोदर्य तपका स्वरूप अन्यत्र भी इसी प्रकार कहा है-'बत्तीस ग्रास प्रमाण आहार पुरुषकी तृप्तिके लिए होता है और स्त्रीकी तृप्ति के लिए अट्ठाईस ग्रास प्रमाण आहार होता है । उससे एक-दो-तीन आदिके क्रमसे घटाते हुए एक ग्रास मात्र लेना ऊनोदर तप है । ग्रासके अनुसार उसके भी भेद माने गये हैं।'
कहीं-कहीं ग्रास का प्रमाण मुर्गी के अण्डेके बराबर भी कहा है। यथा-'मुर्गीके
१. कुक्कुटाण्डसमनासा द्वात्रिंशद्भोजनं मतम् ।
तदेकद्वित्रिभागोनमवमौदर्यमीर्यते ॥ ।
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