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धर्मामृत ( अनगार) द्रव्यपर्याययोरेक्यं तयोरव्यतिरेकतः । परिणामविशेषाच्च शक्तिमच्छक्तिभावतः ॥ संज्ञासंख्याविशेषाच्च स्वलक्षणविशेषतः । प्रयोजनादिभेदाच्च तन्नानात्वं न सर्वथा ॥ [ आप्त. ७१-७२ ] समदेति विलयमच्छति भावो नियमेन पर्ययनयस्य। नोदेति नो विनश्यति भवनतया लिङ्गितो नित्यम् ॥ [
] सिय अत्थि णत्थि उभयं अव्वत्तव्वं पुणो य तत्तिदयं ।
दव्वं खु सत्तभंगं आदेसवसेण संभवदि ॥ [ पञ्चास्ति. १४ ] भिन्न नहीं है। इस तरह वस्तु द्रव्य पर्यायात्मक है। इन दोनों में से यदि एकको भी न माना जाये तो वस्तु नहीं हो सकती। क्योंकि सत्का लक्षण है अर्थक्रिया। किन्तु पर्याय निरपेक्ष अकेला द्रव्य अर्थक्रिया नहीं कर सकता और न द्रव्य निरपेक्ष पर्याय ही कर सकती है । क्योंकि अर्थक्रिया या तो क्रमसे होती है या युगपत् होती है किन्तु केवल द्रव्यरूप या केवल पर्यायरूप वस्तुमें क्रमयोगपद्य नहीं बनता, क्योंकि द्रव्य अथवा पर्याय सर्वथा एक स्वभाव होनेसे उनमें क्रमयोगपद्य नहीं देखा जाता। अनेक पर्यायात्मक द्रव्यमें ही क्रमयोगपद्य पाया जाता है। शायद कहा जाये कि द्रव्य और पर्याय यद्यपि वास्तविक हैं किन्तु उनमें अभेद नहीं है क्योंकि जैसे ज्ञानके द्वारा घट और पटका प्रतिभास भिन्न होता है उसी तरह घट आदि द्रव्यसे रूप आदि पर्यायोंका भी भिन्न प्रतिभास होता है। किन्तु ऐसा कहना ठीक नहीं है क्योंकि प्रतिभास भेद एकत्वका विरोधी नहीं है। जैसे एक ही पदार्थको दूरसे देखनेवाला अस्पष्ट देखता है और निकटसे देखनेवाला स्पष्ट देखता है किन्तु इससे वह पदार्थ भिन्न नहीं हो जाता। उसी तरह उपयोगकी विशेषतासे रूपादि ज्ञानमें प्रतिभास भेद होता है किन्तु इससे द्रव्य और पर्याय भिन्न नहीं हो जाते । इस तरह द्रव्य और पर्याय एक ही वस्तु हैं। किन्तु एक वस्तु होनेपर भी उनमें परस्पर में स्वभाव । नाम, संख्या आदिकी अपेक्षा भेद भी है। द्रव्य अनादि अनन्त है, एक स्वभाव परिणामवाला है, पर्याय सादि सान्त अनेक स्वभाव परिणामवाली है। द्रव्यकी संज्ञा द्रव्य है, पर्यायकी संज्ञा पर्याय है। द्रव्यकी संख्या एक है, पर्यायकी संख्या अनेक है । द्रव्यका कार्य है एकत्वका बोध कराना, पर्यायका कार्य है अनेकत्वका बोध कराना। पर्याय वर्तमान कालवाली होती है, द्रव्य त्रिकालवर्ती होता है। द्रव्यका लक्षण अलग है, पर्यायका लक्षण अलग है । इसतरह स्वभावभेद, संख्याभेद, नामभेद, लक्षणभेद, कार्यभेद, प्रयोजनभेद होनेसे द्रव्य और पर्याय भिन्न हैं किन्तु वस्तुरूपसे एक ही हैं। इसीसे द्रव्यदृष्टिसे वस्तु नित्य है और पर्याय दृष्टिसे अनित्य है । कहा भी हैपर्यायाथिकनयसे पदार्थ नियमसे उत्पन्न होते हैं और नष्ट होते हैं। किन्तु द्रव्यार्थिकनयसे न उत्पन्न होते हैं और न नष्ट होते हैं । अतएव नित्य हैं। ___ स्यात् ( कथंचित् किसी अपेक्षा ) द्रव्य है, स्यात् द्रव्य नहीं है, स्यात् द्रव्य है और नहीं है, स्यात् द्रव्य अवक्तव्य है, स्यात् द्रव्य है और अवक्तव्य है, स्यात् द्रव्य नहीं है और अवक्तव्य है, स्यात् द्रव्य है, नहीं है और अवक्तव्य है। यह सप्तभंगी है। यहाँ स्यात् शब्दका अर्थ कथंचित् है। यह स्यात् शब्द सर्वथापनेका निषेधक और अनेकान्तका द्योतक है। उक्त सात भंगोंका विवेचन इस प्रकार है-स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल और स्वभावकी अपेक्षा द्रव्य है। परद्रव्य, परक्षेत्र, परकाल और परभावकी अपेक्षा द्रव्य नहीं है । क्रमसे
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