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दे देना चाहिये । वह गृहस्थ इसी योग्य है। यही बात श्रीयधनन्दि स्वामीने पत्ननन्दिपंचविंशतिकामें दूसरे । । अधिकारमें कही है।
पूजा न चेन्जिनपतेः पदपंकजेषु, दानं न संयतजनाय च भक्तिपूर्वम् । नो दीयते किमु ततः सदनस्थिताय, शीघ्र जलांजलिरगाधजलं प्रविश्य ॥२४॥
१२-चर्चा बारहवीं प्रश्न-श्रावकोंको सदा प्रातःकाल उठकर सबसे पहले क्या करना चाहिये ?
समाधान-श्रावकोंको प्रातःकाल उठकर शौच आदि क्रियाओंसे निवृत्त होकर प्रथम हो अरहंत देव और निप्रन्थ गुरुका वर्शन करना चाहिये। फिर भक्तिपूर्वक वंदना वा उपासनाकर धर्मशास्त्रोंका स्वाध्याय करना चाहिये । पीछे गृहस्थ सम्बन्धी अन्य कार्य करना चाहिये। भावार्थ--जिनदर्शनादि कार्य कर फिर अन्य कार्य करना यह नियम परम्परासे इसी प्रकार चला आया है। यही बात श्री पपनन्दिपंचविंशतिकाके । छठे अधिकारमें लिखी है। प्रातरुत्थाय कतव्यं देवतागुरुदर्शनम् । भक्त्या तवंदना कार्या धर्मश्रुतिरुपासकैः ॥१६॥
पश्चादन्यानि कार्याणि कर्तव्यानि यतो बुधैः ।
धर्मार्थकाममोक्षाणामादौ धर्मः प्रकीर्तितः ॥ १७॥ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थोमें सबसे पहले धर्म हो कहा है इसलिये सबसे पहले। देव-गुरुका दर्शन कर पीछे अन्य कार्य करना चाहिये।
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१. इसका अर्थ भो ऊपर लिखे अनुसार है। २. धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों पुरुषार्थोसे गृहस्थके लिये मुख्यता कर पहले तीन पुरुषार्थ कहें हैं। मोक्ष पुरुषार्थका साधन
गृहस्थके लिये परम्परासे है और मुनिके लिये साक्षात् है। गृहस्थके लिये धर्म, अर्थ, काम पुरुषार्थ में भी धनं पुरुषार्थ मुख्य है क्योंकि धर्म से अर्थको सिदि होती है इसीलिये गृहस्थके लिये सबसे पहले देवपूजा करनेका विधान बताया है। तथा इसका भी कारण यह है कि गृहस्थधर्ममें देवपुजा हो सबसे मुख्य है। परिणामोंकी शुद्धि और मन लगनेके लिये देवपूजा मुख्य कारण है।