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तब तस्यात्र वै युद्धे संशयोपि भविष्यति ।
कन्याहरणदोषेण नान्यः कोपि वरिष्यति” ॥ १८ ॥ ভাষৰ ধু जिस समय चन्द्रनखा हरी गई थी उस समय मंदोबरीने रावणसे खरदूषणके लिये यह बात कहो १२] थी, इसलिये खरदूषण चौदह हजार विद्याओंका स्वामी नहीं था।
१०-चर्चा दशवीं प्रश्न-लका नामको नमरी कौनसे समुद्र में है लवणोदधि है या उपसमुद्र में है ?
समाधान-लंका लवणोदधि समुद्र में है । वहाँपर सातसौ योजन लंबा चौड़ा एक राक्षसनामका द्वीप है। उस द्वीपमें मेरु पर्वतके समान विचित्रीकूट नामका पर्वत है वह नो योजन ऊधा है, पचास योजन लंबा है। उसपर शत्रु प्रवेश नहीं कर सकते परन्तु जो वहाँ पहुँच जाय उसे वहाँपर अच्छी शरण मिल जाती है। वह पर्वत अनेक वनोंकी शोभासे सुशोभित है। उस पर्वतपर तीस योजनके प्रमाणमें लंका नामको नगरी है ।
जो कि बहुत ही सुन्दर है। यही बात श्रीअजितनाथके समवशरणमें भीम, महाभीम नामके यक्षोंने मेघनाद ॥ नामके विद्याधरोंके राजासे कही थी। "हम तुम्हें ऐसी लंकापुरी देते हैं वहाँ तुम सुखसे रहना" ऐसा पन। पुराणमें लिखा है । वेखो श्रीरविषणाचार्य विरचित पमपुराण पर्व पांचवेमेंखेचरार्भक धन्योसि यस्त्वं शरणमागतः। सर्वज्ञमजितं नाथं तुष्टावावामतस्तव ॥४६॥ शृणु संप्रति ते स्वास्थ्यं यथा भवति सर्वतः । तं प्रकारं प्रवक्ष्यावः पालनीयस्त्वमावयोः ॥४७
(मुद्रितमें १५० वा ) सन्त्यत्र लवणाम्भोधावत्युपग्राहसंकटे । अत्यंतदुर्गमारम्या महाद्वीपाः सहस्रशः ॥४८॥
क्वचित्क्रीडति गंधर्वाः किन्नराणां क्वचिद्गणाः । क्वचिच्च यक्षसंघाताः क्वचित्किंपुरुषामराः॥ १६ ॥ तत्र मध्येऽस्ति सद्वीपो क्षसां क्रीडनक्षमः । योजनानां शतान्येष सर्वतः सप्त कीर्तितः॥५०॥
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