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सागर
इ दंडेःषोडशभिर्मेये भवन्त्येते जलेऽजसा।कायोत्सर्गोपवासाः स्युर्जतुकीणेततोऽधिकाः ॥४०॥
स्वपदार्थे प्रयुक्तैश्च नावाद्यः सरणे सति। स्वल्पं वा बहु वा दद्यात् ज्ञातकालादिको गणी" ॥४१॥
६-चर्चा नौवीं प्रश्न—बहुतसे लोग रावणके बहने विद्याधरोंके राजा खरदूषण विद्याधरको चौदह हजार विद्याओंका स्वामी बतलाते हैं सो ठोक है या नहीं?
___समाधान--यह कहना मिथ्या है । क्योंकि रावणके अठारह हजार विद्याओंकी सिद्धि थी। यदि स्वरदूषणके चौदह हजार विद्याएं' मान ली जाये तो फिर इससे रावणमें क्या अधिकता हुई। शरदूषण भी। रावणके समान हो गया इसलिये ऐसा कहना अज्ञान है । खरदूषणके चौवह हजार विद्याओंको सिद्धि नहीं थी। हाँ; उसके चौवह हजार विद्याधर सेवक थे। चौवह हजार विधाघरोंका वह स्वामी था और उसे हजार विद्याएं सिद्ध थीं, चौदह हजार नहीं । यही बात श्रीरविणाचार्यविरचित पचपुराणके नौवें पर्वमें लिखी है। जबकि । चंद्रनया हरी गई थी उसी समय मंदोवरीने रावणसे कहा हैखेचराणां सहस्त्राणि संति तस्य चतुर्दश । ये वीर्यकृतसन्नाहाः समरादनिवर्तिनः ॥ ३२ ॥
बहून्यस्य सहस्त्राणि विद्यानां दर्पशालिनः।
सिद्धानीति न किं लोकात् भवता श्रवणे कृतम्" ॥ ३३ ॥ यही बात श्री सोमसेन विरचित लघु परपुराणमें छठे अधिकारमै स्मरदूषणको विद्याएं बतलाते समय
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"चतुर्दशसहसाणां विद्याभूतां प्रभुस्त्वयम् ।
निष्पन्नो बहुविद्यामिभोगी रूपी सुखी बली ॥ १७ ॥ नाव आदिके द्वारा नदी आदि पार करनेपर काल मादिको जाननेवाला आचार्य थोड़ा या बहुत (कालको जानकर ) प्रायश्चित्त दे॥४१॥ (देखो-भारतीय जेनसियांत प्रकाशिनी संस्था, कलकताका छपा प्रायश्चित्तसमुच्चय चूलिका पृष्ठ १६६-६७)