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अनेकान्त/२६
की बंदिश को मूर्च्छना कहते हैं। हर राग-रागिनी की अलग-अलग मूर्च्छना होती है जिससे उनकी पहचान की जाती है कि कौन-सी राग गाई जा रही है। हर राग-रागिनी के अलग-अलग देवता, ऋषि, कुल, जाति, वर्ण, छन्द, रस, मौसम, समय और अवसर मुकर्रर हैं। इनकी चित्रमालाएँ भी बनाई गई हैं।
. धवल और मंगल दोनों ही धार्मिक और आध्यात्मिक राग हैं। दोनों ही प्रबन्ध गान हैं और कैशिक राग के अन्ताति माने जाते हैं। पञ्च नामक काव्य की रचना करने वाले कविवर रूपचन्द जी इस बात को जानते थे। इसलिए उनने अपने काव्य के अन्त में कहा कि जो जन भाव सहित स्वरों की साधना करके “मंगल गीत प्रबंध" में जिनवर का गुणगान करते हैं, वे 'मन वांछित फल पावहि' । अडयार लाइब्रेरी मद्रास से प्रकाशित सारङ्ग देय के 'संगीत रत्नाकर' (अध्याय 4) में इनका उल्लेख इस प्रकार है -
आशीभिर्घवलो गेयो धवलादि पदान्वितः
यदृच्छया वा धवलो गेयो लोक प्रसिद्धितः। (धवल प्रबन्ध राग आशीर्वचन और धवलादि पदों के साथ अथवा लोक में प्रचलित सहज स्फूर्त रीति में गाया जाता है।)
कैशिक्याम् वोहरागे वा मंगलं मगलैः पदैः
विलम्बित लये गेयं मंगल छन्दसाथवा। (कौशिक या वोट्ट (भोट) राग में मंगल नाम के छन्द में कल्याणक वाचक पदों के साथ विलम्बित लय में मंगल राग गाया जाता है।)
काव्य में छन्द का भी बड़ा महत्व है। महापुराण में तो भगवान ऋषभ देव को 'छन्दोविद्', 'छन्दकर्ता' ये नाम भी दिए गए हैं क्योंकि उन्होंने ही छन्दशास्त्र, अलंकार शास्त्र तथा गंधर्व शास्त्रों की रचना की थी और अपनी संतान को सिखाए भी थे। छन्द याने पद्य रचना में स्वर-साम्य, पद, गति, यति, लय
और ध्वनि-प्रबन्ध होते हैं, वर्ण व स्वरों की एक बंदिश होती है जिसे प्रत्यय कहते हैं। छन्द की पहचान प्रत्यय से ही की जाती है। काव्यों में छन्द, रस और संगीत का अद्भुत समन्वय होता है। संगीत गायन में तीन प्रकार की लय होती है-द्रुत, मध्य और विलम्बित। हमारा अर्घ्य पद द्रुत विलम्बित छन्द में निबद्ध है अर्थात् जो बारी-बारी से द्रुत और विलम्बित लयों में गाया जा सकता है। छन्द का यह नाम भी गायन की लयों के नाम पर रखा गया जान पड़ता है।
गेय काव्य का जैन मंदिरों में विशेष महत्व है यह बात स्तोत्र दृष्टाष्टक (ज्ञानपीठ पूजाअलि, पृ. 7) के इन अवतरणों में स्पष्ट दिखाई गई है
दृष्टं जिनेन्द्र भवनं भवनादि वास विख्यात नाक गणिकागण गीयमानम्। दृष्टं जिनेन्द्र भवनं सुरसिद्ध यक्ष गन्धर्व किन्नर करार्पित् वेणुवीणा।