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अनेकान्त/२२ १. पापोपदेश : निष्प्रयोजन दूसरो को पाप का उपदेश देना अर्थात् ऐसे व्यापार आदि की सलाह देना जिससे प्राणियो को कष्ट पहुंचे अथवा युद्ध आदि के लिए प्रोत्साहन मिले पापोपदेश नामक अनर्थदण्ड कहलाता है। श्री समन्तभद्राचार्य के अनुसार तिर्यग्वणिज्या, क्लेश वणिज्या, हिंसा, आरंभ, ठगाई आदि की कथाओं के प्रसंग उठाने को पापोपदेश नामक अनर्थदण्ड माना गया है। गाय, भैंस आदि पशुओ को इस देश से ले जाकर अमुक देश में बेचने से अथवा अमुक देश से लाकर यहाँ बेचने से बहुत धन का लाभ होगा ऐसा उपदेश तिर्यग्वणिज्या पापोपदेश है। इसी प्रकार अमुक देश में दासी-दास आसानी से मिल जाते है। उन्हें वहाँ से खरीदकर अमुक देश में बेचने से पर्याप्त अर्थार्जन होगा ऐसा उपदेश देना क्लेशवणिज्या पापोपदेश कहलाता है। शिकारियो से यह कहना कि हिरण, सुअर या पक्षी आदि अमुक देश मे बहुत होते हैं. हिसोपदेश या वधकोपदेश पापोपदेश नामक अनर्थदण्ड कहलाता है। खेती आदि करने वालो को यह बताना कि पृथिवी, जल, अग्नि, पवन एव वनस्पति आदि का संग्रह इन-इन उपायों से करना चाहिए. आरभकोपदेश नामक पापोपदेश अनर्थदण्ड है। चारित्रसार मे इन चार को चार प्रकार का अनर्थदण्ड कहा गया है।” पुरुषार्थ सिद्धयुपाय मे कहा गया है कि बिना प्रयोजन के किसी पुरुष को आजीविका के साधन विद्या, वाणिज्य, लेखनकला. खेती. नौकरी और शिल्प आदि नाना प्रकार के कार्यो एवं उपायो का उपदेश देना पापोपदेश अनर्थदण्ड कहलाता है तथा उसका त्याग पापोपदेश अनर्थदण्डव्रत कहा जाता है। कार्तिकेयानुप्रेक्षा के अनुसार कृषि, पशुपालन, व्यापार आदि तथा स्त्री-पुरुष के समागम आदि का उपदेश पापोपदेश नामक अनर्थदण्ड है। सागार धर्मामृत में पण्डितप्रवर आशाधर ने उन समस्त वचनों को पापोपदेश अनर्थदण्ड कहा है, जो हिसा, झूठ आदि तथा खेती, व्यापार आदि से सम्बन्ध रखते हो। उनका कहना है कि जो इन कार्यो से आजीविका चलाने वाले व्याध. ठग, चोर, कृषक, भील आदि है, उन्हे पापोपदेश नहीं देना चाहिए और न