Book Title: Anekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 191
________________ अनेकान्त/२७ न दूसरे से करावें तथा प्राणियों का घात करने वाले कुत्ता-बिल्ली आदि जन्तुओ को न पाले। यहाँ यह ध्यातव्य है कि जहाँ कार्तिकेयानुप्रेक्षा में बिल्ली आदि जन्तुओं के पालन को हिंसादान अनर्थदण्ड मे रखा गया है३३, वहाँ सागारधर्मामृत · में इसे प्रमादचर्या माना गया है। पर्यावरण प्रदूषण आज विश्व की भीषणतम समस्या है। पृथ्वी की निरन्तर खुदाई, दूषित जल, अग्नि का अनियन्त्रित प्रयोग, दूषित वायु तथा रासायनिक खादो एवं कीटनाशकों से दूषित अन्न एवं वनस्पतियों के प्रयोग ने आज पर्यावरण को अत्यन्त प्रदूषित कर दिया। यदि विश्व के अधिकांश मानव मात्र प्रमादचर्या न करें, निष्प्रयोजन भूमि को न खोदें, आवश्यकता से अधिक जलस्रोतों का उपयोग न करें तथा जलाशयों एवं नदियों के पानी को कारखानों के विषैले दूषित जल से बचावें, कोयला, मिट्टी का तेल, डीजल, पेट्रोल, लकडी जलाने आदि को सीमित कर लें, विभिन्न गैसों से वायु प्रदूषित न होने दें तथा व्यर्थ पेड-पौधों को न काटे तो पर्यावरण प्रदूषण की भयावह समस्या से बचा जा सकता है। उक्त पॉच अनर्थदण्डों के अतिरिक्त अमृतचन्द्राचार्य ने जुआ खेलने को भी अनर्थदण्ड माना है। उनका कहना है कि जुआ सब अनर्थो में प्रथम है, सन्तोष का नाशक है और मायाचार का घर है. चोरी और असत्य का स्थान है। अत. इसे दूर से ही त्याग देना चाहिए। अनर्थदण्डव्रत के अतिचार - अतिचार और अतिक्रम पर्यायवाची शब्द हैं। अतिचार का अभिप्राय है ग्रहण किये गये नियम में दोष का लगना या नियम का किसी कारणवश अतिक्रमण हो जाना। सामान्यत. अतिचार में अज्ञातभाव से

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