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अनेकान्त / ३९
नाभि, नाभि के ऋषभ, ऋषभ के ज्येष्ठ पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष पडा सिद्ध होता है । लिगपुराण का कथन है
पृ ३१२-१३ इस प्रकार वैदिक और बौद्धादि परम्पराये भी जैन सम्मत लोक स्वरूप का समर्थन करती है। वस्तुत लोक तो शाश्वत है। उसके स्वरूप में परिवर्तन सम्भव नहीं ।
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'नाभेर्निसर्ग वष्यामि हिमांधकोऽस्मिन्निबोधत । नाभिस्त्वाजनयत पुत्रं मरुदेव्यां महामतिः । । ऋषभं पार्थिवं श्रेष्ठं सर्वक्षत्रस्य पूजितम् । ऋषभात् भरतो जज्ञे वीर: पुत्र शताग्रज: ।। सोऽमिषिच्याध ऋषभो भरतं पुत्र वत्सलः ।
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हिमाद्रेर्दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत् ।
तस्मात्तु भारतं वर्षं तस्य नाम्ना विदुर्बुधाः । । - लिंगपुराण. भारतवर्ष वर्णन.
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सन्दर्भ
रत्नकरण्ड श्रावकाचार वीर सेवा मंदिर ट्रस्ट, १९७२ श्लोक २/२
वही २/३
राजवार्तिक. भारतीय ज्ञानपीठ, ५/१२/१०-१३
त्रिलोकसार
वही
वही, तत्त्वार्थसूत्र, वाराणसी अध्याय - ३. सूत्र - १
'प्राड्मानुषोत्तरान्मनुष्या '-तत्त्वार्थसूत्र, ३/३५
श्रीमद्भागवत, गीताप्रेस, गोरखपुर सवत् २०१८, २/५/२१-३५
वही २/५/३६
वही २/५/३८-३९