Book Title: Anekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 205
________________ व्यक्तित्व विकास के चौदह सोपान, चौदह गुणस्थान - पं. आनंद कुमार शास्त्री ' आसु' व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व विकास के लिए बहुत संघर्ष करना पडता है । प्रकृति ने मनुष्य को छोडकर, दूसरे प्राणियो को उसने जैसा चाहा उसे वैसा बना दिया । सिह को हिंसक, गाय को शाकाहारी, मगर इंसान को कुछ नहीं, इंसान को इंसान पर छोड़ दिया कि तुझे जो बनना है वैसा बन । तो आयें, हम अपने व्यक्तित्व को खोजें उसमें से एक ऐसी आशा निकालें जिससे सारा जगत् प्रकाशित हो जाये। क्योंकि व्यक्तित्व हमारी चांदनी है और उस व्यक्तित्व विकास के लिए व्यक्ति को निरन्तर कर्मयोगी बनना पडता है । हमारा व्यक्तित्व हमारे जीवन की बहुमूल्य सपत्ति है, जिसे हम ही कमा सकते है । यह किसी प्रतिनिधि के हाथो नही हो सकता। हमारा व्यक्तित्व ऐसा बन जाये कि अनायास प्रभावना हो हमें अपने व्यक्तित्व को इतना प्रभावक बनाना है कि हमारे बिना समाज स्वयं को रीता समझे। उस व्यक्तित्व को प्रभावक बनाने के लिए सत्य की सम्यग्दृष्टा अरहंत भगवान् ने ये चौदह गुणस्थान हमे दिये हैं । मिथ्यात्त्व - सामान्यतया, दुनिया मे जड व्यक्तित्व अधिक होते हैं, वे इतने मूढ होते हैं, मूर्खता के गुलाम होते है कि वे गोबर के गणेश बने रह जाते हैं । गोबर यानि जडबुद्धि, महामूर्ख । ऐसे लोग अपने व्यक्तित्व · के विकास के बारे में पहल नही करते । ससार की ज्यादातर आत्मायें ऐसी ही मूर्ख हैं । इसी गुणस्थान में है जो मिथ्यात्व गुणस्थान कहा जाता है ।

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