Book Title: Anekant 2000 Book 53 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 211
________________ अनेकान्त/४७ समूल नष्ट हो जाती है। क्षपक श्रेणी पर आरुढ होने वाले इस गुणस्थानवर्ती जीव के इस गुणस्थान का सख्यात भाग व्यतीत हो जाने पर छत्तीस प्रकृतियो की सत्ताव्युच्छित्ति होती है, वह असख्यात गुण श्रेणी निर्जरा गुण संक्रमण स्थिति खण्डन और अप्रशस्त प्रकृतियों का अनुभाग खण्डन तथा शुभ प्रकृतियों की अनुभाग वृद्धि करता हुआ सूक्ष्म सांपराय नामक दसवे गुणस्थान में प्रवेश करता है। उपशम श्रेणी पर आरोहण होने वाला अनिवृत्तिकरण नामक गुणस्थान मे २० प्रकृतियों का उपशम करके दशवें में चला जाता है। सूक्ष्मसांपराय-दसवे घर का जो लोग दरवाजा खटखटाते है, उसमे प्रवेश कर लेते हैं. ससार उस ओर उमडता है। इस गृहस्वामी के दर्शनमात्र से लोगो की खुशी होती है। सूक्ष्म कषाय को सूक्ष्मसापराय कहते हैं। जो साधक आत्मशुद्धि की अपेक्षा इस अवस्था मे प्रवेश कर जाते हैं, उन्हे सूक्ष्म सापराय प्रविष्ट-शुद्धि-संयत कहते है। जिस प्रकार धुले हुए कौसुंभी रेशमी वस्त्र में सूक्ष्म हल्की लालिमा शेष रह जाती है, उसी प्रकार जो जीव अत्यन्त सूक्ष्म राग अर्थात् लोभ कषाय से युक्त होता है उसको सूक्ष्मसापराय नामक दशम गुण स्थानवर्ती कहते है। उपशांत कषाय-ग्यारहवीं सीढी बहुत खतरनाक है. ऐसा समझिये इस सीढी पर केले के छिलके पड़े है, पैर रखा कि फिसला। यह काम करती है दमित क्रोध, मान, माया, लोभ की चाडाल चौकडी, यह दबी हुई माया हमारे मुह पर थप्पड लगाती है। इसलिए व्यक्तित्व विकास की पगडडी पर चलने वाले व्यक्ति को ग्यारहवी सीढी पर पैर नहीं रखना चाहिए। इसे फादकर आगे बढना है, पर फाद भी वही सकता है, जिसने चांडाल चौकडी को कभी पास नहीं फटकने दिया। जिसकी कषाये उपशांत हो गयी हैं, उन्हें उपशांत कषाय कहते है। निर्मली जल से युक्त जल की तरह अथवा शरद् ऋतु में ऊपर से स्वच्छ हो जाने वाले सरोवर के जल की तरह मोहनीय कर्म के पूर्ण उपशम से उत्पन्न होने वाले निर्मल

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