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अनेकान्त/३०
वृद्धि करता है। अत अनर्थदण्ड के त्याग रूप इस गुणव्रत का श्रावक के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। अनर्थदण्डव्रत के पालन से व्यर्थ के पापबन्ध से बचा जा सकता है।
संदर्भ १ सर्वार्थसिद्धि, ७/२१ ।
आभ्यन्तरं दिगवधेरपार्थिकेभ्य सपापयोगेभ्य । विरमणमनर्थदण्डव्रत विदुव्रतधराग्रण्य ।। रत्नकरण्ड श्रा, ७४ ।
प्रयोजन विना पापोदानहेत्वनर्थदण्ड । चारित्रसार. १६/४ ४ पीडा पापोपदेशाद्यैर्देहाद्यर्थाद्विनाऽगिनाम्।
अनर्थ दण्डस्तत्त्यागोऽनर्थदण्डव्रत मतम्।। सागार धर्मामृत. ५/६ कज्ज किं पि ण साहदि णिच्च पाव करेदि जो अत्थो। सो खलु हवदि अणत्यो ।। कार्तिकेयानुप्रेक्षा, ३४३ पापोपदेशहिसादानापध्यानदु श्रुती पञ्च । प्राहु प्रमादचर्यामनर्थदण्डानदण्डधरा ।। रत्नकरण्डश्रावकाचार. ७५ द्रष्टव्य-पुरुषार्थ सिद्धयुपाय. १४१-१४६ द्रष्टव्य-यतीन्द्रसूरि अभिनन्दन ग्रन्थ मे 'आजनो जैन अने गृहस्थ धर्म' लेख. लेखक-पूनमचंद नागरदास दोशी एव द्रष्टव्य योगशास्त्र-हेमचन्द्राचार्य, ३/७३-७४ तिर्यक्लेशवणिज्याहिंसारंभलम्भनादीनाम् । कथाप्रसंगप्रसवः स्मर्तव्य पाप उपदेश. ।। रत्नकरण्डश्रावकाचार, ७६
१० चारित्रसार, १६/४ ११ विद्यावाणिज्यमषीकृषिसेवाशिल्पजीविना पुंसाम् ।
पापोपदेशदान कदाचिदपि नैव वक्तव्यम्।। पुरुषार्थसि . १४२