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अनेकान्त/३६
बौद्ध परम्परा के अनुसार " लोक के अधोभाग में १६,००,००० योजन ऊँचा अपरिमित वायुमण्डल है। इसके ऊपर ११, २०,००० योजन जलमण्डल, जलमण्डल में ३,२०,००० योजन भूमण्डल है जिसके बीच में मेरु पर्वत है । आगे चारों ओर ८०,००० योजन समुद्र है । आगे ४०,००० योजन युगन्धर पर्वत है । आगे भी इसी प्रकार समुद्र व पर्वत हैं जो आधे विस्तार वाले हैं इनके नाम हैं - ईषाधर, खदिरक, सुदर्शन, अश्वकर्ण, विनतक और निमिंधर । अन्त में लोहमय चक्रवाल पर्वत है । निमिन्धर और चक्रवाल पर्वतों के मध्य जो समुद्र है, उसमें मेरु की पूर्व दिशा में अर्धचन्द्राकार पूर्व विदेह दक्षिण में शकटाकार जम्बूद्वीप, पश्चिम में मण्डलाकार अवर गोदानीय द्वीप तथा उत्तर में समचतुष्कोण उत्तर कुरु है । इन चारों के पार्श्व में दो-दो अन्तद्वीप हैं। इनमें जम्बूद्वीप के पास वाले चमर द्वीप मे राक्षसों का और शेष में मनुष्यों का निवास है । भूमण्डल के ऊपर ज्योतिष्क लोक और उसके ऊपर स्वर्गलोक है ।
भागवत के अनुसार मनु के पुत्र प्रियव्रत ने जब देखा कि सुमेरु पर्वत के जिस ओर सूर्य जाता है उधर प्रकाश रहता है बाकी जगह में अंधेरा । अत: सर्वत्र प्रकाश करने की इच्छा से उन्होने ज्योतिर्मय रथ पर चढकर, सुमेरु की सात परिक्रमाये कर डाली । उनके रथ के पहियों से जो लीकें बनीं वे सात समुद्र बन गये । अत पृथ्वी में सात द्वीप बन गये । द्वीपों के नाम हैं - जम्बू, प्लक्ष, शाल्मल, कुश, क्रौंच, शाक और पुष्कर । पुष्कर द्वीप के बीच में मानुषोत्तर पर्वत है, यहीं तक मनुष्यों की गति है । १३ आगे देवता रहते हे ये सभी द्वीप परिमाण में पहले की अपेक्षा दुगुने - दुगुने हैं।" जैन परम्परा के अनुसार भी ये सभी द्वीप - समुद्र पहले की अपेक्षा दुगुने - दुगुने विस्तार वाले हैं । ५
जम्बूद्वीप
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जम्बूद्वीप थाली के समान गोल है। इसमें जम्बूवृक्ष होने से इनका नाम जम्बूद्वीप पडा। इसके बीच में सुमेरु पर्वत है । जम्बूद्वीप का विष्कम्भ १,००,००० योजन बताया गया है। इसमें कुल सात वर्ष या क्षेत्र हैं, जिनके नाम हैं- भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक हैरण्यवत और ऐरावत । १७