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अनेकान्त/२६
कुछ शास्त्र ऐसे होते हैं. जिनमें मुख्य रूप से कामभोग विषयक या हिसा, चोरी आदि का ही कथन होता है। इनके सुनने से काम विकार उत्पन्न होता है तथा हिंसा, चोरी आदि की बुरी आदतें पड़ जाती हैं। दु:श्रुति नामक अनर्थदण्डव्रत में ऐसे ग्रन्थों के पढने, सुनने, सुनाने आदि को छोड़ने की बात कही गई है।
५. प्रमादचर्या : प्रमादचर्या अनर्थदण्ड का उल्लेख प्रमादाचरित नाम से भी किया गया है। आचार्य समन्तभद्र के अनुसार बिना प्रयोजन पृथिवी, जल, अग्नि और पवन के आरम्भ करने को, वनस्पति छेदने को, पर्यटन करने-कराने को प्रमादचर्या अनर्थदण्ड कहते हैं।२२ आचार्य पूजयपाद ने लिखा है- 'प्रयोजनमन्तरेण वृक्षादिच्छेदनभूमिकुट्ट नसलिलसेचनाद्यवद्यकर्म प्रमादाचरितम् ।' अर्थात् बिना प्रयोजन के वृक्षादि का छेदना, भूमि का कूटना, पानी का सींचना आदि पापकार्य प्रमादाचरित नामक अनर्थदण्ड हैं।" आचार्य अमृतचन्द्र का भी यही विचार है। उन्होंने लिखा है कि निष्प्रयोजन भूमि को खोदना, वृक्षादि को उखाडना, दूब आदि हरी घास को रोंदना या खोदना, पानी सींचना, फल, फूल, पत्र आदि को तोडना आदि पापपूर्ण क्रियाओं को करना प्रमादचर्या अनर्थदण्ड है।३१ पण्डित प्रवर आशाधर का कहना है कि
प्रमादचर्यां विफलं क्ष्मानिलाग्न्यम्बुभूरुहाम् । खातव्याघातविध्यापसेकच्छेदादि नाचरेत् ।। तद्वच्च न सरेद् व्यर्थं न परं सारयेन्नहि । जीवघ्नजीवान् स्वीकुर्यान्मार्जारशुनकादिकान् ।।३२
अर्थात् बिना प्रयोजन भूमि का खोदना, वायु को रोकना, अग्नि को बुझाना, पानी सींचना, वनस्पति का छेदन-भेदन आदि करना प्रमादचर्या है। उसे नहीं करना चाहिए। बिना प्रयोजन पृथिवी खोदने आदि की तरह बिना प्रयोजन हाथ-पैर आदि का हलन-चलन न स्वयं करें और